जानिए नस की बीमारी होने पर खुद से दवा लेना कैसे भारी पड़ सकता है ?

नसों का हमारे शरीर में महत्वपूर्ण स्थान होता है, क्युकी ये हमारे शरीर की रक्त की धाराओं को सम्पूर्ण शरीर में प्रयाप्त मात्रा में पहुंचाती है, पर जरा सोचें अगर किसी कारण इनमे किसी तरह की परेशानी आ जाए तो कैसे हम इस तरह की समस्या से खुद का बचाव कर सकते है। वही बहुत से लोगों के मन में आज ये सवाल होगा की सामान्य नसों में परेशानी होने पर खुद से दवाई ले या न ले, तो ऐसे प्रश्नो के बारे में हम आज के आर्टिकल में चर्चा करेंगे, इसलिए आर्टिकल को अंत तक जरूर पढ़े ;

नस क्या होते है ?

  • नसें रक्त वाहिकाएं होती हैं जो रक्त को हृदय की ओर ले जाती है। वही मानव शरीर में दो प्रकार की नसें होती है, पहली गहरी नसें और दूसरी सतही नसें। 
  • वही गहरी नसों की बात करें तो ये नसें शरीर के भीतर गहरी स्थित होती है, जबकि सतही नसें त्वचा की सतह के करीब स्थित होती हैं और अक्सर दिखाई देती हैं।

नसों की कमजोरी क्या है ?

  • नसों की कमजोरी को मेडिकल के टर्म में न्यूरोपैथी के नाम से जाना जाता है। वहीं, बात जब संपूर्ण शरीर की नसों की कमजोरी की हो रही हो, तो उसके लिए मेडिकली टर्म के रूप में इसे पेरिफेरल न्यूरोपैथी कहा जाता है। 
  • नसों की बात की जाए तो ये शरीर में किसी कम्प्यूटर के वायर की तरह काम करती है, जो शरीर की विभिन्न क्रियाओं को करने के लिए दिमाग तक संदेश पहुंचाती है। वही जब किसी वजह से ये नसें दिमाग तक ठीक तरह से संदेश पहुंचाने में विफल होती है या फिर नहीं पहुंचा पाती है, तो इसे ही नसों की कमजोरी के रूप में जाना जाता है। 

नसों में कमजोरी के लक्षण है ?

  • स्मरण शक्ति में क्षति का पहुंचना। 
  • सिर दर्द की समस्या। 
  • मांसपेशियों में अकड़न की समस्या। 
  • पीठ में दर्द की समस्या। 
  • झटके या दौरे का पड़ना। 

कारण क्या है नसों के कमजोरी के ?

  • किसी तरह की बीमारी का होना। 
  • किसी वजह से नसों पर दबाव का पड़ना। 
  • जेनेटिक समस्या का होना। 
  • दवाओं के दुष्प्रभाव, पोषण तत्वों में कमी या विषाक्त पदार्थ के कारण भी ऐसी समस्या हो सकती है। 

नसों में कमजोरी के कारणों के बारे में विस्तार से जानने के लिए लुधियाना में बेस्ट न्यूरोलॉजिस्ट का चयन करें। 

क्या नसों की बीमारी होने पर हम खुद से दवाई ले सकते है ?

  • नसों का हमारे शरीर में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है इसलिए अगर इनमे किसी भी तरह की समस्या आ जाए तो खुद से या किसी के कहने से दवा का सेवन न करें। बल्कि आपको नसों में कमजोरी महसूस हो रही है तो इसके लिए आप न्यूरो विशेषज्ञों से करें। 

नसों की कमजोरी को कैसे दूर किया जा सकता है ?

  • नियमित व्यायाम, उचित आराम, उचित स्वास्थ्य देखभाल की स्थिति और उचित और संतुलित आहार खाने से नसों की कमजोरी को ठीक किया जा सकता है।

नसों की कमजोरी की जाँच व इलाज के लिए बेस्ट हॉस्पिटल !

  • अगर आप भी नसों के कमजोरी की समस्या का सामना उपरोक्त जैसे कर रहें है तो इससे बचाव के लिए आपको झावर हॉस्पिटल का चयन करना चाहिए। 

निष्कर्ष :

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क्या है न्यूरोसर्जन और न्यूरोलॉजिस्ट के बीच का मत्वपूर्ण अंतर ?

न्यूरोलॉजिस्ट और न्यूरोसर्जन के बारे में तो अकसर सबने सुना होगा लेकिन इनके बीच के अंतर के बार्रे में बहुत कम लोगों को पता है। इसलिए आज के लेख में हम इन दोनों के बीच अंतर क्या है उसके बारे में बात करेंगे की आखिर इन दोनों का काम क्या होता है और अगर इनसे कोई ट्रीटमेंट करवाना हो तो कौन-से डॉक्टर को किस बीमारी के लिए चुने, तो शुरुआत करते है आर्टिकल की ;

न्यूरोसर्जन और न्यूरोलॉजिस्ट के बीच क्या अंतर है ?

  • न्यूरोलॉजिस्ट और न्यूरोसर्जन दोनों तंत्रिका प्रणाली विकारों का निदान और प्रबंधन करते है, लेकिन न्यूरोलॉजिस्ट सर्जरी नहीं करते हैं। न्यूरोलॉजिस्ट जटिल न्यूरोलॉजिकल निदान खोजने पर ध्यान केंद्रित करते हैं जिनका इलाज अन्य दवाओं या उपचारों के साथ किया जा सकता है।
  • जबकि एक न्यूरोसर्जन चिकित्सा समस्याओं के इलाज के लिए सर्जरी कर सकता है, न्यूरोलॉजिस्ट दवाओं और अन्य प्रक्रियाओं के साथ विशिष्ट स्थितियों का इलाज भी करते है। 
  • एक न्यूरोलॉजिस्ट और एक न्यूरोसर्जन दोनों ही ईईजी और एमआरआई जैसे जटिल न्यूरोलॉजिकल परीक्षण कर सकते हैं। फिर भी, केवल न्यूरोसर्जन ही स्थिति को ठीक करने के लिए सर्जरी करने के लिए निष्कर्षों का उपयोग कर सकते है, जबकि न्यूरोलॉजिस्ट केवल दवाओं का सुझाव दे सकते है या रोगी को देखभाल के लिए न्यूरोसर्जन के पास भेज सकते है।

तो अगर आपको ये जानना है की बीमारी के समय कौन सी दवाइयां आपको लेनी है तो इसके लिए आपको बेस्ट न्यूरोलॉजिस्ट लुधियाना का चयन करना चाहिए।

न्यूरोलॉजिस्ट किस चीज में माहिर होते है ?

अगर आपमें निम्न लक्षण नज़र आए तो इसके लिए आपको न्यूरोलॉजिस्ट का चयन करना चाहिए ;

  • लगातार चक्कर का आना। 
  • भावनाओं में बदलाव का आना। 
  • संतुलन के साथ कठिनाइयाँ। 
  • सिर दर्द की समस्या। 
  • भावनात्मक भ्रम। 
  • मांसपेशियों की थकान आदि। 

न्यूरोलॉजिस्ट दवाइयों की मदद से व्यक्ति का इलाज करते है और ये सर्जरी का चुनाव नहीं करते। 

न्यूरोसर्जन किस चीज में माहिर होते है?

अगर आपमें निम्न गंभीर लक्षण नज़र आए तो सर्जरी करवाने के लिए आपको न्यूरोसर्जन का चयन करना चाहिए ; 

  • इंडोवैस्कुलर रिपेयर करना। 
  • डिस्क हटाना। 
  • क्रानिओटोमी की समस्या। 
  • लम्बर पंक्चर समस्या की सर्जरी। 
  • अनुरिस्म रिपेयर आदि समस्याओं का न्यूरोसर्जन के द्वारा सर्जरी करके ठीक किया जाता है। 

न्यूरोसर्जन और न्यूरोलॉजिस्ट कौन-सी बीमारी का इलाज करते है ?

  • एक न्यूरोलॉजिस्ट मिर्गी, अल्जाइमर रोग, परिधीय तंत्रिका विकार और एएलएस जैसी न्यूरोलॉजिकल स्थितियों के इलाज में रुचि रखते हैं।
  • जबकि न्यूरोसर्जन मस्तिष्क की चोटों, ट्यूमर को हटाने और कार्पल टनल सिंड्रोम से निपटने में मदद करता है।

न्यूरोसर्जन और न्यूरोलॉजिस्ट की चयन के लिए बेहतरीन हॉस्पिटल ?

  • अगर आप अपनी बीमारी के इलाज और सर्जरी के लिए किसी बेहतरीन न्यूरोसर्जन और न्यूरोलॉजिस्ट का चयन करना चाहते है तो इसके लिए आप झावर ब्रेन एन्ड स्पाइन हॉस्पिटल का चयन कर सकते है।

एक न्यूरोसर्जन और न्यूरोलॉजिस्ट की शैक्षिक योग्यता क्या है ?

  • एक न्यूरोलॉजिस्ट बनने के लिए चार साल के प्री-मेडिकल स्कूल की आवश्यकता होती है, इसके बाद न्यूरोलॉजी में मेडिकल डिग्री और मूवमेंट, स्ट्रोक आदि में अतिरिक्त प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। 
  • वही न्यूरोसर्जन बनने का शैक्षिक मार्ग अधिक विस्तृत है, जिसके लिए चार साल के प्री-मेडिकल स्कूल और चार साल के मेडिकल स्कूल की आवश्यकता होती है।

निष्कर्ष :

उम्मीद करते है की आपने जान लिया होगा की आखिर क्या अंतर है न्यूरोसर्जन और न्यूरोलॉजिस्ट के बीच। तो भविष्य में अगर आपको किसी भी तरह की बीमारी होगी तो आपको ये सोचने की जरूरत नहीं होगी की आप कौन से डॉक्टर के पास जाए अपनी परेशानी के लिए।

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मस्तिष्क के रोगों का अब जड़ से होगा निदान अच्छे न्यूरोलॉजिस्ट का कहा अगर लोगे मान

मासिक रोग क्यों होता हैं ? 

  • मानसिक रोग क्यों होता हैं का पता लगाना मुश्किल है, लेकिन हा  कुछ लोगो का मानना हैं कि ये अत्यधिक तनाव की वजह से, समय सर खाना न खाने की वजह से,और गहन सोच की वजह से होता हैं .
  • अपने भविष्य को लेकर अत्यन चिंता भी कही ना कही मानसिक बीमारी को उत्पन करती हैं

न्यूरोलॉजिस्ट कौन होते हैं ?

  • न्यूरोलॉजिस्ट मस्तिष्क के उपचार के क्षेत्र में काम करता है। बता दे कि जो न्यूरोलॉजिस्ट होते हैं वे मस्तिष्क, स्पाइनल कॉर्ड, नसों तथा मांसपेशियों की स्थिति पर नजर भी ऱखते है और उनके रोगों की पहचान कर उनका निदान भी करते है।
  • न्यूरोलॉजिस्ट तकरीबन मानसिक उत्पीड़ा से शिकार लोगो की मदद करते हैं और अगर कोई व्यक्ति इस उत्पीड़न का शिकार है तो उसे लुधियाना में ही बेस्ट न्यूरोलॉजिस्ट से जरूर सलाह लेनी चाहिए . 

लक्षण क्या हैं मानसिक बीमारी के ?

यदि आपमें निम्नलिखित में से कुछ लक्षण दिखाई दे तो समझ लेना की आपको एक अच्छे न्यूरोलॉजिस्ट के पास जानें की जरूरत हैं….

  • मांसपेशियों की थकान
  • पूरे सिर में भारीपन का लगातार अहसास होना 
  • संवेदनाओं या भावनाओं में बदलाव
  • संतुलन के साथ कठिनाइयाँ
  • सिर दर्द
  • भावनात्मक भ्रम
  • लगातार चक्कर आना

न्यूरोलॉजिस्ट और न्यूरोसर्जन में फर्क :

कुछ लोग न्यूरोसर्जन और न्यूरोलॉजिस्ट में फर्क को लेकर काफी गहन सोच में पड़े रहते हैं तो बता दे की आपके इस चिंतन का समाधान भी आज के इस लेखन में हम प्रस्तुत करेंगे, ताकि आपको परेशानी न हो और समय रहते  आप अपना इलाज किसी अच्छे न्यूरोलॉजिस्टसे से करवा सको….,,

  • बता दे कि जो एक न्यूरोलॉजिस्ट होते है वो मिर्गी, अल्जाइमर रोग, परिधीय तंत्रिका विकार और एएलएस जैसी न्यूरोलॉजिकल स्थितियों के इलाज में रुचि रखते हैं।
  • तो वही दूसरी ओर, न्यूरोसर्जन मस्तिष्क की चोटों, ट्यूमर को हटाने और दीर्घकालिक बीमारियों वाले लोगों पर सर्जिकल ऑपरेशन करने के योग्य हैं।

इलाज क्या हैं अगर हम मानसिक उत्पीड़न से गुज़र रहे हो तो ?

  • खुद को सकारात्मक रखें 
  • वह कार्य करे जिससे आपको ख़ुशी मिले 
  • सदाबहार गाने सुने 
  • खुद की डाइट का ध्यान रखे 
  • अपने प्राथमिक चिकित्सक से सलाह लेकर अच्छे न्यूरोलॉजिस्ट के पास जरूर जाए 

शैक्षिक योग्यता क्या होनी चाहिए एक न्यूरोलॉजिस्ट व न्यूरोसर्जन की: 

यहाँ एक बात गौरतलब करने योग्य है कि एक न्यूरोलॉजिस्ट और एक न्यूरोसर्जन के बीच के अंतर को समझने के लिए, आवश्यक डिग्री और विशेषज्ञता में अंतर को समझना सबसे पहले आवश्यक है….

  • बता दे कि एक न्यूरोलॉजिस्ट बनने के लिए चार साल के प्री-मेडिकल स्कूल की आवश्यकता होती है, इसके बाद न्यूरोलॉजी में मेडिकल डिग्री और मूवमेंट, स्ट्रोक आदि में अतिरिक्त प्रशिक्षण की आवश्यकता भी होती है।
  • तो वही दूसरी और न्यूरोसर्जन बनने का शैक्षिक मार्ग अधिक विस्तृत है, जिसके लिए चार साल के प्री-मेडिकल स्कूल और चार साल के मेडिकल स्कूल की आवश्यकता होती है। अन्य बातों के अलावा, न्यूरोसर्जन को यह सीखना चाहिए कि रीढ़ और परिधीय नसों पर कैसे काम करना चाहिए        
  • निष्कर्ष :

यदि आप पंजाब के वासी है तो एक बार डॉ. सुखदीप सिंह झावर  न्यूरोलॉजिस्ट से जरूर मिलें जो कि लुधियाना और फगवाड़ा में भी OPD करते है, यहाँ पर जरूर आए लेकिन अपने प्राथमिक चिकित्सक से सलाह लेकर ताकि आपको आपकी बीमारी का पता हो और उसका इलाज भी जल्दी हो सके और आपको परेशानी भी ज्यादा न हो और बता दे कि आप अपनी बीमारी के इलाज कि सलाह यहाँ के स्पेशलिस्ट डॉ. सुखदीप सिंह झावर से ले सके ,क्युकी इन्हें इस बीमारी के जाने माने चिकित्सक के रूप में जाना जाता हैं |

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जानिए ब्रेन ट्यूमर के लक्षणों को नज़रअंदाज़ करना कैसे पड़ सकता है भारी !

कैंसर जिसका नाम सुनते ही लोगों के पैरों तले जमीन खिसक जाती है, और साथ ही ये काफी खतरनाक बीमारी में से एक मानी जाती है। वही अगर व्यक्ति को ब्रेन ट्यूमर हो जाए तो वो कैसे खुद का बचाव कर सकता है साथ ही कैंसर के लक्षणों को जानकर हम कैसे इसको पहचाने इसके बारे में आज के लेख में बात करेंगे, तो आप या आपके करीबियों में से कोई इस तरह की समस्या का सामना कर रहा है तो कैसे वो खुद को इस तरह की समस्या से बाहर निकाल सकता है इसके बारे में आज के आर्टिकल में बात करेंगे ;

क्या है दिमाग का कैंसर ?

ब्रेन ट्यूमर में दिमाग की कोशिकाएं जरूरत से ज्यादा तेजी से बढ़ने और फैलने लगती है, जिससे आस-पास मौजूद टीश्यूज और ऑर्गन डैमेज हो जाते है। और यही ख़राब हुए ऑर्गन आपमें कैंसर जैसे खतरनाक बीमारी को उत्पन्न करते है।

दिमाग के कैंसर का पता कैसे लगाए ?

  • दिमाग के कैंसर का पता लगाने के लिए आप न्यूरोलॉजिकल जांच, सीटी स्कैन, एमआरआई स्कैन, और पॉज़िट्रॉन एमिशन टोमोग्राफी (PET) स्कैन करवा सकते है। 
  • वही इन सभी जांचों में कैंसर कोशिकाओं की जांच के लिए मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी के चारों ओर तरल पदार्थ का एक छोटा सा नमूना एकत्र किया जाता है।

दिमाग के कैंसर का पता लगाने के बाद आप बेस्ट न्यूरोलॉजिस्ट लुधियाना का चयन भी कर सकते है।

ब्रेन ट्यूमर के कितने प्रकार है ?

सामान्यतः मस्तिष्क के कैंसर को दो भागों में बाटा जाता है;

  • पहला जिसे प्राइमरी कैंसर कहा जाता है और ये कैंसर दिमाग के जिस हिस्से में शुरू होता है, बस वहीं बढ़ता रहता है। 
  • जबकि सेकेंडरी कैंसर की बात करें तो इस कैंसर की शुरुआत शरीर के किसी एक हिस्से में होती है, जिसके बाद ये शरीर के दूसरे हिस्से जैसे- दिमाग, फेफड़े, ब्रेस्ट, किडनी, कोलोन और स्किन में फैल जाते है।

ब्रेन ट्यूमर के लक्षण क्या है ?

ब्रेन ट्यूमर के कुछ लक्षण हम निम्न प्रस्तुत कर रहें है ;

  • अगर आपको बिना किसी बीमारी के लगातार सिर में तेज दर्द रहता है तो ये ब्रेन ट्यूमर का लक्षण हो सकता है। 
  • चक्कर या उल्टी महसूस करना, हालांकि, ये लक्षण कई समय बाद देखने को मिलते है. लेकिन कई बार ब्रेन ट्यूमर के शुरुआत में ही ये लक्षण सामने आ जाते है, ऐसा कैंसर की कोशिकाओं का दिमाग में मौजूद फ्लूड के साथ मिक्स होने पर भी होता है। 
  • जब शरीर में कुछ बदलाव दिखने लगे जैसे याददाश्त का कमजोर होना, व्यक्तित्व में बदलाव दिखाई देने लगें तो ये भी ब्रेन ट्यूमर के लक्षण हो सकते है। 
  • इसके अलावा आप कैंसर के लक्षणों में धुंधली दृष्टि, का दोहरा दिखना जैसा कुछ मेहसूस कर सकते है।
  • एक हाथ या एक पैर का काम नहीं करना। 
  • शरीर और दिमाग का बैलेंस बना पाने में मुश्किल का सामना करना। 
  • बोलने में परेशानी का आना। 
  • उलझन महसूस करना आदि।

ब्रेन ट्यूमर से बचाव के लिए बेस्ट हॉस्पिटल !

अगर आप या आपके परिजन में से कोई भी इस घातक बीमारी का सामना कर रहें है या इस बीमारी के लक्षण उनमे नज़र आ रहें हो तो इससे बचाव के लिए आपको झावर हॉस्पिटल का चयन करना चाहिए, वही आपको बता दे की इस हॉस्पिटल में अनुभवी डॉक्टरों के द्वारा आधुनिक उपकरणों की मदद से मरीजों का इलाज किया जाता है। 

निष्कर्ष :

मस्तिष्क का कैंसर बहुत ही खतरनाक माना जाता है, क्युकि दिमाग ही एक ऐसा पार्ट होता है जिसके माध्यम से हमारा पूरा शरीर टिका हुआ हुआ है, इसलिए अगर आपको उपरोक्त में से सामान्य लक्षण भी आप में नज़र आए, तो जल्द ही डॉक्टर का चयन करें, वर्ना दिमागी कैंसर से आपकी जान भी जा सकती है।

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दिमाग की नस फटने से पहले पड़ता है छोटा अटैक, जानिए लक्षणों को पहचान कर हम इससे कैसे खुद का बचाव कर सकते है ?

न्यूरोलॉजिकल स्वास्थ्य के क्षेत्र में, चेतावनी संकेतों की सूक्ष्मताओं को समझना महत्वपूर्ण हो सकता है, खासकर जब मस्तिष्क धमनीविस्फार के संभावित खतरे की बात आती है। इससे पहले कि मस्तिष्क में कोई तंत्रिका किसी गंभीर बिंदु पर पहुंच जाए, वह आसन्न हमले का संकेत देने वाले सूक्ष्म संकेत प्रदर्शित कर सकती है। इन लक्षणों को पहचानने और सक्रिय उपाय करने से गंभीर परिणामों को रोकने में काफी मदद मिल सकती है। आइए इन संकेतकों की पहचान करें और समझें कि अपनी सुरक्षा कैसे करें ;

दिमागी छोटा अटैक क्या है ?  

ब्रेन स्ट्रोक की तरह छोटा अटैक भी दिमाग की नस ब्लॉक होने से आता है। वहीं कुछ रिपोर्ट के अनुसार इसकी वजह से दिमाग को ऑक्सीजन मिलना बंद हो जाते है। लेकिन ये डैमेज परमानेंट नहीं होती है और 24 घंटे में खुद ही ठीक हो जाती है।

दिमाग की नस फटने से पहले किस तरह के लक्षण नज़र आते है ?

  • आसन्न मस्तिष्क धमनीविस्फार के लक्षण हर व्यक्ति में अलग-अलग हो सकते है। हालाँकि, कुछ सामान्य संकेत प्रारंभिक चेतावनी दे सकते है। इन संकेतकों में अक्सर लगातार सिरदर्द शामिल होता है, जिसे आमतौर पर अचानक और गंभीर बताया जाता है। यह अनुभूति पिछले सिरदर्द के विपरीत हो सकते है, जिसकी तीव्रता असामान्य महसूस होती है। इसके साथ, व्यक्तियों को दृश्य गड़बड़ी का अनुभव हो सकता है, जैसे धुंधली दृष्टि या प्रकाश के प्रति संवेदनशीलता। ये लक्षण अचानक प्रकट हो सकते है या समय के साथ धीरे-धीरे खराब हो सकते है, जो चिंता का एक महत्वपूर्ण कारण बन सकते है।
  • एक अन्य प्रमुख संकेत गर्दन में दर्द या अकड़न की शुरुआत है, जो अक्सर आंखों के ऊपर और पीछे असुविधा या दर्द के साथ जुड़ा होता है। ये संवेदनाएँ रुक-रुक कर उठ सकती है या लगातार बनी रह सकती है। कुछ व्यक्तियों को ध्वनि के प्रति संवेदनशीलता, बोलने के पैटर्न में बदलाव या यहां तक कि व्यवहार में बदलाव का भी अनुभव हो सकता है जो उनके लिए असामान्य है। मतली और उल्टी, जिसका किसी अन्य स्पष्ट कारण से कोई संबंध नहीं है, जो ध्यान देने योग्य संकेत हो सकते है।
  • हालाँकि ये लक्षण व्यक्तिगत रूप से गैर-विशिष्ट या सौम्य लग सकते है, यह इन संकेतकों का संयोजन और दृढ़ता है जिस पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है। यदि किसी को ऐसे लक्षण अनुभव होते है, तो तत्काल चिकित्सा सहायता लेना महत्वपूर्ण हो जाता है। समय पर निदान और हस्तक्षेप धमनीविस्फार के टूटने और इसके संभावित विनाशकारी परिणामों को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। गंभीर मस्तिष्क की स्थिति होने पर आपको लुधियाना में क्लस्टर स्ट्रोक का इलाज जरूर से करवाना चाहिए।

दिमाग की नस फटने से पहले इसको कैसे रोके ?

  • हालाँकि, मस्तिष्क धमनीविस्फार को रोकना पूरी तरह से हमारे नियंत्रण में नहीं है, क्योंकि आनुवंशिकी, उम्र और पहले से मौजूद स्थितियों जैसे कारक इसके विकास में योगदान कर सकते है। फिर भी, कुछ जीवनशैली समायोजन और सावधानियां है, जो जोखिम को कम करने में सहायता कर सकती है। नियमित व्यायाम, स्वस्थ आहार बनाए रखना और रक्तचाप का प्रबंधन मौलिक निवारक उपाय है। धूम्रपान और अत्यधिक शराब के सेवन से बचना भी धमनीविस्फार के विकास के जोखिम को कम करने में महत्वपूर्ण है।
  • इसके अलावा, अपने स्वास्थ्य के प्रति सतर्क रहना अत्यावश्यक है। स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों के साथ नियमित जांच और परामर्श संभावित जोखिम कारकों की पहचान करने और उन्हें कम करने के लिए आवश्यक कदम उठाने में सहायता कर सकते है। व्यक्तिगत चिकित्सा इतिहास को समझना, खासकर यदि परिवार में एन्यूरिज्म चलता हो, सक्रिय उपाय करने और उचित चिकित्सा मार्गदर्शन प्राप्त करने में महत्वपूर्ण है।
  • तनाव प्रबंधन तकनीकें, जैसे कि माइंडफुलनेस, योग या ध्यान, भी एन्यूरिज्म के विकास के जोखिम को कम करने में भूमिका निभा सकते है, क्योंकि क्रोनिक तनाव उच्च रक्तचाप में योगदान कर सकता है, जो एन्यूरिज्म के लिए एक महत्वपूर्ण जोखिम कारक है।

दिमाग की नस फटने से पहले आप इससे कैसे खुद का बचाव कर सकते है इसके बारे में जानने के लिए आपको लुधियाना में बेस्ट न्यूरोलॉजिस्ट का चयन करना चाहिए।

दिमागी छोटे अटैक से बचाव के लिए किन बातों का रखें ध्यान !

  • धूम्रान और शराब का सेवन बंद कर दें।
  • ताजे फल, सब्जी और साबुत अनाज का सेवन करें।
  • शरीर का वजन कंट्रोल रखें।
  • नियमित एक्सरसाइज करें।
  • फैट का सेवन कम कर दें।
  • ​टाइप 2 डायबिटीज, हाई कोलेस्ट्रॉल, हाई बीपी जैसी बीमारियों की दवा लेते रहें।

मस्तिष्क के इलाज के लिए बेस्ट हॉस्पिटल !

अगर आप दिमागी दौरे या अटैक पड़ने की समस्या से खुद का बचाव करना चाहते है, तो इसके लिए आपको झावर हॉस्पिटल का चयन चाहिए। वहीं इस दौरान पड़ने वालें दौरे के लक्षणों को आपको नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए।

निष्कर्ष : 

मस्तिष्क धमनीविस्फार की संभावना कठिन लग सकती है, संभावित लक्षणों के बारे में जागरूक होना और आवश्यक सावधानी बरतने से गंभीर परिणामों को रोकने में काफी मदद मिल सकती है। चेतावनी के संकेतों को पहचानना, तुरंत चिकित्सा सहायता लेना और नियमित चिकित्सा जांच के साथ स्वस्थ जीवन शैली अपनाना मस्तिष्क धमनीविस्फार से जुड़े संभावित खतरों के खिलाफ हमारा कवच हो सकता है। इस स्थिति से जुड़े जोखिमों को कम करते हुए, अपने स्वास्थ्य और कल्याण को प्राथमिकता देना हमारे हाथ में है।

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नींद की कमी जानिए कैसे बढ़ा सकता है मानसिक रोग ‘डिमेंशिया’ का खतरा, और क्या है इससे बचाव के तरीके ?

हम जिस तेज़-तर्रार दुनिया में रहते है, वहां अक्सर रात की अच्छी नींद हमारे व्यस्त कार्यक्रम में पीछे रह जाती है। हालाँकि, हमारी नींद की उपेक्षा के परिणाम अगले दिन सुस्ती महसूस करने से कहीं अधिक दूर तक जाते है। हाल के अध्ययनों से नींद की कमी और मनोभ्रंश विकसित होने के बढ़ते जोखिम के बीच एक मजबूत संबंध का पता चलता है, जो संज्ञानात्मक गिरावट की विशेषता वाले विकारों का एक समूह है। यह संबंध हमारे मानसिक स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए गुणवत्तापूर्ण नींद को प्राथमिकता देने के महत्व को रेखांकित करता है। तो आइये जानने की कोशिश करते है की नींद की कमी से व्यक्ति मानसिक रोग डिमेंशिया का शिकार कैसे होता है और साथ ही इससे बचाव के तरीके क्या है ; 

नींद मानव शरीर से कैसे संबंधित है ?

  • मानव मस्तिष्क एक जटिल अंग है और इसके समुचित कार्य के लिए पर्याप्त नींद महत्वपूर्ण है। जब हम लगातार खुद को नींद से वंचित रखते है, तो हमारे दिमाग को उन आवश्यक प्रक्रियाओं से गुजरने का मौका नहीं मिलता है जो स्मृति समेकन, सीखने और समग्र संज्ञानात्मक कार्य में सहायता करती है। समय के साथ, नींद की कमी मस्तिष्क में बीटा-एमिलॉइड जैसे हानिकारक प्रोटीन के संचय में योगदान कर सकती है, जो मनोभ्रंश के विकास से जुड़ा है।
  • अपने मस्तिष्क की सफ़ाई करने वाली एक टीम के रूप में नींद की कल्पना करें। गहरी नींद के दौरान मस्तिष्क दिन भर जमा होने वाले विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालता है। जब हम अपने दिमाग को यह आवश्यक समय नहीं देते है, तो ये विषाक्त पदार्थ जमा हो सकते है, जिससे संभावित रूप से प्लाक और उलझनें बन सकती है, जो मनोभ्रंश के प्रमुख संकेतक है। 
  • संक्षेप में, नींद की लगातार कमी संज्ञानात्मक विकारों की शुरुआत और प्रगति के लिए अनुकूल वातावरण बना सकती है।

प्रयाप्त नींद न लेने की वजह से अगर आप मानसिक समस्या के शिकार हो गए है, तो इससे बचाव के लिए आपको लुधियाना में बेस्ट न्यूरोलॉजिस्ट का चयन जरूर से करना चाहिए।

प्रयाप्त नींद कैसे लें ? 

  • नींद की कमी के कारण मनोभ्रंश के संभावित खतरे को रोकने के लिए स्वस्थ नींद की आदतों को अपनाना शामिल है। सबसे पहले, एक सुसंगत नींद कार्यक्रम स्थापित करना सर्वोपरि है। हर दिन एक ही समय पर बिस्तर पर जाना और जागना आपके शरीर की आंतरिक घड़ी को विनियमित करने में मदद करता है, जिससे अधिक आरामदायक और आरामदायक नींद को बढ़ावा मिलता है। यह सरल कदम अनियमित नींद पैटर्न से जुड़े संज्ञानात्मक गिरावट के जोखिम को काफी कम कर सकता है।
  • नींद के लिए अनुकूल माहौल बनाना मनोभ्रंश से बचने का एक और आवश्यक पहलू है। अपने शयनकक्ष को ठंडा, अंधेरा और शांत रखें, और आरामदायक गद्दे और तकिए में निवेश करें। सोने से पहले इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के संपर्क को कम करना महत्वपूर्ण है, क्योंकि उत्सर्जित नीली रोशनी मेलाटोनिन के उत्पादन में हस्तक्षेप कर सकती है, एक हार्मोन जो नींद-जागने के चक्र को नियंत्रित करता है।

व्यायाम बेहतरीन नींद के लिए कैसे सहायक है ?

  • नियमित व्यायाम मनोभ्रंश के खिलाफ लड़ाई में एक शक्तिशाली सहयोगी है। शारीरिक गतिविधि में शामिल होने से न केवल नींद की गुणवत्ता में सुधार होता है, बल्कि मस्तिष्क की समग्र कार्यक्षमता भी बढ़ती है। सप्ताह के अधिकांश दिनों में कम से कम 30 मिनट का मध्यम व्यायाम करने का लक्ष्य रखें। यह तेज़ चलना, तैरना, या नृत्य सत्र जितना सरल हो सकता है – आप जो आनंद लेते है उसे ढूंढें और इसे अपनी दिनचर्या का नियमित हिस्सा बनाएं।
  • गहरी साँस लेने के व्यायाम और ध्यान जैसी मानसिक विश्राम तकनीकें भी मनोभ्रंश को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। ये अभ्यास मन को शांत करने, तनाव कम करने और शांति की भावना को बढ़ावा देने में मदद करते है, जो गुणवत्तापूर्ण नींद के लिए अनुकूल है। सोते समय एक ऐसी दिनचर्या स्थापित करना जिसमें इन विश्राम तकनीकों को शामिल किया जाए, यह आपके शरीर को संकेत दे सकते है कि यह आराम करने का समय है, जिससे सो जाना आसान हो जाता है।

पूरी नींद न लेने की वजह से कई बार व्यक्ति रुक-रुक कर होने वाले सिर दर्द की समस्या का सामना भी करता है, तो अगर आपमें भी इस तरह की समस्या नज़र आए तो इससे बचाव के लिए आपको लुधियाना में क्लस्टर स्ट्रोक का इलाज जरूर से करवाना चाहिए।

मानसिक समस्या से निजात पाने के लिए बेस्ट हॉस्पिटल !

नींद पूरी ना करने के कारण अगर आप मानसिक रोग या डिमेंशिया जैसी गंभीर समस्या का सामना कर रहें है, तो इससे बचाव के लिए आपको झावर हॉस्पिटल का चयन जरूर से करना चाहिए। 

निष्कर्ष :

स्वस्थ नींद की आदतें अपनाकर, लगातार सोने का कार्यक्रम बनाए रखकर, अनुकूल नींद का माहौल बनाकर, नियमित व्यायाम में संलग्न होकर और विश्राम तकनीकों का अभ्यास करके, हम अपने मानसिक स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए सक्रिय कदम उठा सकते है। अब समय आ गया है कि हम नींद के हमारे संज्ञानात्मक कल्याण पर पड़ने वाले गहरे प्रभाव को पहचानें और इसे अपने जीवन में प्राथमिकता दें।

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तंत्रिका संबंधी विकार क्या है और इस दौरान किस तरह के लक्षण नज़र आते है ?

न्यूरोलॉजिकल विकार, जिन्हें न्यूरोलॉजिकल रोग या स्थितियों के रूप में भी जाना जाता है, चिकित्सा मुद्दों की एक व्यापक श्रेणी है जो तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करते है। तंत्रिका तंत्र विभिन्न शारीरिक कार्यों के समन्वय और विनियमन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है, जिससे इसके सामान्य कामकाज में महत्वपूर्ण चिंता का सामना करना पड़ सकता है। वहीं इस ब्लॉग पोस्ट में, हम न्यूरोलॉजिकल विकारों के बारे में गहराई से चर्चा करेंगे, उनके सामान्य लक्षणों और प्रभावित लोगों के सामने आने वाली चुनौतियों का भी पता लगाएंगे ;

तंत्रिका संबंधी विकारों के दौरान दिखने वाले लक्षण क्या है ?

सिर में दर्द और माइग्रेन की समस्या –

सबसे आम न्यूरोलॉजिकल लक्षणों में से एक सिरदर्द है। जबकि कभी-कभार होने वाला सिरदर्द आम है, लेकिन बार-बार होने वाला, गंभीर या पुराना सिरदर्द किसी अंतर्निहित न्यूरोलॉजिकल समस्या का संकेत हो सकता है। तीव्र धड़कते दर्द की विशेषता वाला माइग्रेन, एक अन्य सामान्य न्यूरोलॉजिकल लक्षण है।

दिमागी दौरे का पड़ना –

दौरे तब पड़ते है जब मस्तिष्क में असामान्य विद्युत गतिविधि होती है। वे आक्षेप, परिवर्तित चेतना और असामान्य गतिविधियों के रूप में प्रकट हो सकते है। मिर्गी एक प्रसिद्ध स्थिति है जिसमें बार-बार दौरे का पड़ना शामिल है।

शरीर का सुन्न होना –

शरीर में सुन्नता और झुनझुनी की अनुभूति, जिसे अक्सर पेरेस्टेसिया कहा जाता है, तंत्रिका क्षति या शिथिलता का संकेत हो सकता है। यह शरीर के किसी भी हिस्से को प्रभावित कर सकता है और अस्थायी या दीर्घकालिक हो सकता है।

मांसपेशियों में कमजोरी की समस्या –

मांसपेशियों की कमजोरी तंत्रिका संबंधी विकारों का एक और प्रचलित लक्षण है। यह हल्की कमजोरी से लेकर पूर्ण पक्षाघात तक हो सकता है और एक या अधिक अंगों को प्रभावित कर सकता है।

समन्वय की हानि का होना –

तंत्रिका संबंधी विकार समन्वय और संतुलन को प्रभावित कर सकते है। व्यक्तियों को अनाड़ीपन, चलने में कठिनाई और गिरने की प्रवृत्ति का अनुभव हो सकता है।

स्मृति समस्याओं का सामना –

अल्जाइमर रोग और मनोभ्रंश के अन्य रूपों सहित कई न्यूरोलॉजिकल स्थितियों में स्मृति समस्याएं और संज्ञानात्मक कमी आम है। ये विकार अल्पकालिक और दीर्घकालिक स्मृति को प्रभावित कर सकते है। अगर आपके सोचने समझने की समस्या ख़त्म हो गई तो इसके लिए आपको लुधियाना में बेस्ट न्यूरोसर्जन का चयन करना चाहिए।

दृष्टि में परिवर्तन का आना –

तंत्रिका संबंधी विकार भी दृष्टि को प्रभावित कर सकते है। तंत्रिका क्षति या शिथिलता के कारण धुंधली दृष्टि, दोहरी दृष्टि और दृश्य गड़बड़ी हो सकती है।

वाणी और भाषा संबंधी कठिनाइयाँ –

भाषा बोलने या समझने में कठिनाई तंत्रिका संबंधी विकार का संकेत हो सकती है। इसमें अस्पष्ट वाणी, शब्दों को ढूंढने में कठिनाई या ख़राब समझ शामिल हो सकते है।

चक्कर आना और वर्टिगो के संकेत –

चक्कर आना और सिर घूमना, जिसकी विशेषता चक्कर आने जैसी अनुभूति है, जिससे आंतरिक कान की समस्याओं या मस्तिष्क के संतुलन केंद्रों में गड़बड़ी के परिणामस्वरूप हो सकते है।

निगलने में कठिनाई का सामना –

डिस्फेगिया, या निगलने में कठिनाई, तब हो सकती है जब तंत्रिका संबंधी विकार निगलने की प्रक्रिया में शामिल मांसपेशियों और तंत्रिकाओं को प्रभावित करते है।

मूड और व्यवहार में बदलाव का आना –

तंत्रिका संबंधी विकार मूड और व्यवहार को प्रभावित कर सकते है। व्यक्तियों को अवसाद, चिंता, चिड़चिड़ापन या व्यक्तित्व परिवर्तन का अनुभव हो सकता है।

थकान की समस्या –

क्रोनिक थकान कई तंत्रिका संबंधी विकारों का एक सामान्य लक्षण है। यह किसी व्यक्ति के जीवन की गुणवत्ता पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है।

झटके लगना –

झटके में शरीर के एक या अधिक अंगों का हिलना शामिल होता है और आमतौर पर पार्किंसंस रोग जैसी स्थितियों से जुड़ा होता है।

नींद संबंधी परेशानियां –

अनिद्रा और अत्यधिक दिन की नींद सहित नींद की गड़बड़ी, स्लीप एपनिया या रेस्टलेस लेग सिंड्रोम जैसे न्यूरोलॉजिकल विकारों से जुड़ी हो सकती है।

तंत्रिका संबंधी विकार क्या है ?

  • न्यूरोलॉजिकल विकार उम्र, लिंग या पृष्ठभूमि की परवाह किए बिना किसी को भी प्रभावित कर सकती है। इन विकारों में हल्के और प्रबंधनीय से लेकर गंभीर और जीवन-परिवर्तनकारी स्थितियों की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल है। यद्यपि कई तंत्रिका संबंधी विकार है, और वे अक्सर सामान्य लक्षण साझा करते है, जो विभिन्न तरीकों से प्रकट हो सकते है।
  • तंत्रिका संबंधी विकारों का एक सामान्य लक्षण मांसपेशियों में कमजोरी या पक्षाघात है। इन विकारों से पीड़ित लोगों को अपने अंगों को हिलाने में कठिनाई का अनुभव हो सकता है, जिससे रोजमर्रा के काम करने की उनकी क्षमता प्रभावित हो सकती है। उदाहरण के लिए, मल्टीपल स्केलेरोसिस (एमएस) या एमियोट्रोफिक लेटरल स्केलेरोसिस (एएलएस) जैसी स्थितियां मांसपेशियों में कमजोरी का कारण बन सकती है, जिससे गतिशीलता संबंधी समस्याएं हो सकती है और रोगी के जीवन की गुणवत्ता ख़राब हो सकती है।
  • तंत्रिका संबंधी विकारों में संवेदी गड़बड़ी भी आम है। इसमें शरीर के विभिन्न हिस्सों में सुन्नता, झुनझुनी या संवेदना की कमी जैसे लक्षण शामिल है। उदाहरण के लिए, परिधीय न्यूरोपैथी वाले व्यक्तियों को अपने हाथों और पैरों में झुनझुनी या सुन्नता का अनुभव हो सकता है, जिससे संतुलन और समन्वय में कठिनाई हो सकती है।
  • इसके अलावा, तंत्रिका संबंधी विकार अक्सर संज्ञानात्मक हानि के रूप में प्रकट होते है। याददाश्त संबंधी समस्याएं, एकाग्रता में कठिनाई और व्यवहार या व्यक्तित्व में बदलाव अक्सर देखे जाते है। अल्जाइमर रोग, एक तंत्रिका संबंधी विकार जो मुख्य रूप से वृद्ध वयस्कों को प्रभावित करता है, अपनी प्रगतिशील संज्ञानात्मक गिरावट के लिए प्रसिद्ध है, जिससे स्मृति हानि और व्यवहार में परिवर्तन आम है।

तंत्रिका संबंधी विकारों से बचाव के लिए आपको लुधियाना में बेस्ट न्यूरोलॉजिस्ट का चयन करना चाहिए।

तंत्रिका संबंधी विकार के लिए बेस्ट हॉस्पिटल !

तंत्रिका संबंधी विकार व्यक्ति को कई सारी शारीरक और मानसिक बीमारियों का सामना करवा सकती है। इसलिए जरुरी है की इसमें किसी भी तरह के लक्षण नज़र आए तो आपको इससे बचाव के लिए झावर हॉस्पिटल का चयन करना चाहिए।  

निष्कर्ष :

तंत्रिका संबंधी विकारों में कई प्रकार की स्थितियाँ शामिल होती है, जो तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करती है, जिससे विभिन्न प्रकार के लक्षण उत्पन्न होते है। ये लक्षण मांसपेशियों की कमजोरी और कंपकंपी से लेकर संज्ञानात्मक हानि और मूड में बदलाव तक ला सकते है। 

यदि आप या आपका कोई परिचित इनमें से किसी भी लक्षण का अनुभव कर रहा है, तो इन स्थितियों से प्रभावित लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए चिकित्सा सलाह और सहायता लेना आवश्यक है।

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स्ट्रोक पुनर्वास क्या है और ये कैसे हमारे दिमाग के साथ संबंधित है?

स्ट्रोक पुनर्वास एक ऐसा उपचार माना जाता है, जिसमे स्ट्रोक या दिमागी दौरे के कारण हमारा दिमाग सही से कार्य करने में असमर्थ होता है तो उसको फिर से ठीक किया जा सकता है। स्ट्रोक पुनर्वास की मदद से व्यक्ति जो भी दिमागी तौर पर समस्या का सामना कर रहें होते है उससे वो आसानी से निजात पाने में सक्षम हो पाते है, स्ट्रोक पुनर्वास  क्या है, इसमें कौन-कौन से लोग शामिल है के बारे में अगर आप जानना चाहते है, तो इसके लिए लेख के साथ अंत तक बने रहें ;

स्ट्रोक पुनर्वास क्या है ?

  • स्ट्रोक पुनर्वास को सरल भाषा में समझने की कोशिश करें तो इसमें हम पुनर्वास की मदद से दिमागी नुकसान को आसानी से वापस पा सकते है। पुनर्वास के दौरान ज्यादातर लोग ठीक हो जाते है। हालांकि, कई पूरी तरह से ठीक नहीं होते है। 
  • त्वचा कोशिकाओं के विपरीत, तंत्रिका कोशिकाएं जो मर जाती है वे ठीक नहीं होती है और उन्हें नई कोशिकाओं द्वारा प्रतिस्थापित नहीं किया जाता है। हालांकि, मानव मस्तिष्क अनुकूलनीय है। क्षतिग्रस्त मस्तिष्क कोशिकाओं का उपयोग करके लोग कार्य करने के नए तरीके सीख सकते है।
  • यह पुनर्वास अवधि अक्सर एक चुनौती होती है। 
  • वहीं इसमें रोगी और परिवार नर्सों और डॉक्टरों के साथ शारीरिक, व्यावसायिक और भाषण चिकित्सक की एक टीम के साथ काम करते है। तो इस प्रक्रिया में अधिकांश सुधार प्रक्रिया के पहले तीन से छह महीनों में होंगे। लेकिन कुछ लोग लंबी अवधि में अच्छी प्रगति कर सकते है।

स्ट्रोक पुनर्वास में क्या शामिल हो सकते है ?

  • लोगों को स्ट्रोक से बाहर निकालने के लिए कई दृष्टिकोण सहायक माने जाते है। लेकिन कुल मिलाकर, पुनर्वास विशेष रूप से केंद्रित और दोहराए जाने वाले कार्यों पर केंद्रित है। वहीं एक ही चीज़ का बार-बार अभ्यास करना। आपकी पुनर्वास योजना आपके स्ट्रोक से प्रभावित शरीर के हिस्से या क्षमता के प्रकार पर निर्भर कर सकती है।

स्ट्रोक से निजात पाने के लिए निम्नलिखित शारीरिक पुनर्वास की गतिविधियां शामिल हो सकती है, जैसे ;

  • मोटर-कौशल व्यायाम, की प्रक्रिया में व्यायाम पूरे शरीर में मांसपेशियों की ताकत और समन्वय को बेहतर बनाने में मदद कर सकते है। इनमें संतुलन, चलने और यहां तक ​​कि निगलने के लिए उपयोग की जाने वाली मांसपेशियां शामिल हो सकती है।
  • गतिशीलता प्रशिक्षण, में आप वॉकर, बेंत, व्हीलचेयर या टखने के ब्रेस जैसे गतिशीलता उपकरणों का उपयोग करना सीख सकते है। जब आप फिर से चलना सीखते है तो टखने का ब्रेस आपके शरीर के वजन को सहारा देने में मदद करने के लिए आपके टखने को स्थिर और मजबूत कर सकता है।

फिर पुनर्वास में संज्ञानात्मक और भावनात्मक गतिविधियां शामिल है, जैसे ;

  • संज्ञानात्मक विकारों के लिए थेरेपी. व्यावसायिक थेरेपी और स्पीच थेरेपी आपको स्मृति, प्रसंस्करण, समस्या-समाधान, सामाजिक कौशल, निर्णय और सुरक्षा जागरूकता जैसी खोई हुई संज्ञानात्मक क्षमताओं में मदद कर सकती है।
  • संचार विकारों के लिए थेरेपी, में स्पीच थेरेपी आपको बोलने, सुनने, लिखने और समझने की खोई हुई क्षमताओं को वापस पाने में मदद कर सकती है।
  • मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन और उपचार, आपके भावनात्मक समायोजन का परीक्षण किया जा सकता है। आप परामर्श भी ले सकते है या किसी सहायता समूह में भाग ले सकते है।
  • आपके डॉक्टर इस समस्या से निजात दिलवाने के लिए आपको एक एंटीडिप्रेसेंट या ऐसी दवा लेने की सिफारिश कर सकते है जो सतर्कता, उत्तेजना या गतिविधि को प्रभावित करती है।

स्ट्रोक पुनर्वास को कब शुरू करना चाहिए ? 

  • जितनी जल्दी आप स्ट्रोक पुनर्वास शुरू करेंगे, आपकी खोई हुई क्षमताएं और कौशल आप उतनी जल्दी वापस पाने की सक्षम हो पाएगे।
  • आपके स्ट्रोक के 24 से 48 घंटों के भीतर, जब आप अस्पताल में हों, तो स्ट्रोक पुनर्वास शुरू होना आम बात है।

स्ट्रोक पुनर्वास से बचाव के लिए आपको लुधियाना में बेस्ट न्यूरोलॉजिस्ट के संपर्क में आना चाहिए।

स्ट्रोक पुनर्वास को शरीर के किस हिस्से पर किया जाता है ?

  • पुनर्वास आमतौर पर स्ट्रोक के बाद अस्पताल में शुरू होता है। यदि आपकी स्थिति स्थिर है, तो स्ट्रोक के दो दिनों के भीतर पुनर्वास शुरू हो सकता है और अस्पताल से आपकी रिहाई के बाद तक जारी रह सकता है। 
  • वहीं स्ट्रोक पुनर्वास शरीर के विभिन्न हिस्सों पर किया जा सकता है, जो स्ट्रोक के परिणामस्वरूप व्यक्ति द्वारा अनुभव की जाने वाली विशिष्ट हानि और विकलांगता पर निर्भर करती है।
  • यहां शरीर के कुछ सामान्य क्षेत्र है, जो स्ट्रोक पुनर्वास के कारण प्रभावित होते है ;
  • ऊपरी अंग यानी बाहें और हाथ। 
  • निचले छोर यानि पैर के हिस्से आदि।

स्ट्रोक के कारण आपके शरीर और दिमाग पर काफी गहरा प्रभाव पड़ा है, तो इससे बचाव के लिए आपको लुधियाना में बेस्ट न्यूरोसर्जन का चयन करना चाहिए।

स्ट्रोक पुनर्वास में कौन-सी टीम शामिल होती है ?

  • अनुभवी डॉक्टरों की टीम इसमें शामिल होती है। 
  • पुनर्वास नर्सें भी इस टीम में शामिल होती है। 
  • अगर आप चलने फिरने में असमर्थ है भौतिक चिकित्सक की टीम भी आपके देखभाल में शामिल हो सकती है 
  • व्यावसायिक चिकित्सक की टीम का शामिल होना।  
  • भाषण और भाषा रोगविज्ञानी का शामिल होना। 
  • सामाजिक कार्यकर्ता का शामिल होना। 
  • मनोवैज्ञानिक का शामिल होना। 
  • चिकित्सीय मनोरंजन विशेषज्ञ का शामिल होना। 
  • व्यावसायिक परामर्शदाता का शामिल होना आदि।

सुझाव :

स्ट्रोक या दिमागी दौरे के कारण अगर आपका शरीर ठीक तरीके से कार्य करने में असमर्थ है तो इससे बचाव के लिए आपको जल्द डॉक्टर के सम्पर्क में आना चाहिए और स्ट्रोक या स्ट्रोक से पुनर्वास की मदद से आप इस समस्या से खुद का बचाव आसानी से कर सकते है। इसके अलावा आप चाहे तो इसका इलाज झावर हॉस्पिटल से भी करवा सकते है।

निष्कर्ष :

स्ट्रोक की समस्या काफी गंभीर है लेकिन पुनर्वास की मदद से आप इस तरह की समस्या से खुद का बचाव आसानी से करवा सकते है और स्ट्रोक की समस्या से भी खुद का बचाव कर सकते है, पर ध्यान रहें स्ट्रोक की समस्या आने पर आप किसी भी तरह की दवाई को खुद से न लें जब तक डॉक्टर से परामर्श न लें।

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मिर्गी के दौरे क्या है जानिए इसके विभिन्न प्रकार और बचाव के तरीके ?

मिर्गी के दौरे एक न्यूरोलॉजिकल स्थिति है जो मस्तिष्क में असामान्य विद्युत गतिविधि की विशेषता होती है, जिससे लक्षणों और अभिव्यक्तियों की एक विस्तृत श्रृंखला का पता लगता है। ये दौरे भयावह और विघटनकारी हो सकते है, लेकिन उनके विभिन्न प्रकारों को समझने और रोकथाम के तरीकों को लागू करने से व्यक्तियों को अपनी स्थिति को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने में मदद मिल सकती है;

 

मिर्गी के दौरों के प्रकार क्या है ?

मिर्गी के दौरे को दो मुख्य प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है – फोकल (आंशिक) दौरे और सामान्यीकृत दौरे ;

साधारण आंशिक दौरे ; 

इन दौरों में, असामान्य विद्युत गतिविधि मस्तिष्क के एक विशिष्ट हिस्से में स्थानीयकृत होती है। व्यक्ति सचेत रहता है लेकिन असामान्य संवेदनाओं, गतिविधियों या भावनाओं का अनुभव कर सकता है।

जटिल आंशिक दौरे ; 

ये दौरे भी मस्तिष्क के एक विशिष्ट क्षेत्र में शुरू होते है, लेकिन वे अक्सर व्यक्ति की जागरूकता को बदल देते है और अजीब, दोहराव वाले व्यवहार को जन्म दे सकते है।

अनुपस्थिति दौरे ; 

पहले पेटिट माल दौरे के रूप में जाना जाता था, ये संक्षिप्त एपिसोड एक व्यक्ति को कुछ सेकंड के लिए खाली घूरने का कारण बनते है, अक्सर घटना के बारे में जागरूकता या स्मृति के बिना।

टॉनिक-क्लोनिक दौरे ; 

ये रूढ़िवादी “ग्रैंड माल” दौरे है, जिनमें चेतना की हानि, शरीर का अकड़ना (टॉनिक चरण), इसके बाद लयबद्ध झटके आना (क्लोनिक चरण) शामिल है।

एटोनिक दौरे ;

इसे “ड्रॉप अटैक” के रूप में भी जाना जाता है, इन दौरों से मांसपेशियों की टोन में अचानक कमी आती है, जिससे संभावित रूप से गिरना पड़ सकता है। अगर आपको एटोनिक दौरे पड़ते है तो इसे बचाव के लिए आपको लुधियाना में मिर्गी रोग विशेषज्ञ का चयन करना चाहिए।

मायोक्लोनिक दौरे ; 

इसमें मांसपेशियों में संक्षिप्त, झटके जैसे झटके या मरोड़ शामिल होते है और यह एक विशिष्ट मांसपेशी समूह या पूरे शरीर को प्रभावित कर सकते है। अगर मांसपेशियों में अकड़न या झटके संबंधी समस्या का आपको भी सामना करना पड़ रहा है तो इससे बचाव के लिए आपको लुधियाना में बेस्ट न्यूरोलॉजिस्ट का चयन करना चाहिए।

 

रोकथाम के तरीके क्या है ?

मिर्गी के दौरे को रोकने में चिकित्सा और जीवनशैली दृष्टिकोण का संयोजन शामिल है। दौरे की रोकथाम के लिए यहां कुछ रणनीतियाँ दी गई है ;

दवा प्रबंधन :

मिर्गी के सबसे आम उपचार में एंटीपीलेप्टिक दवाएं (एईडी) शामिल है, जो मस्तिष्क की गतिविधि को स्थिर करने में मदद करती है। निर्धारित दवाएं नियमित रूप से और स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर के निर्देशानुसार लेना महत्वपूर्ण है।

जब्ती ट्रिगर जागरूकता :

नींद की कमी, तनाव या कुछ खाद्य पदार्थों जैसे व्यक्तिगत ट्रिगर्स की पहचान करने से व्यक्तियों को दौरे के जोखिम को कम करने के लिए जीवनशैली में समायोजन करने में मदद मिल सकती है।

स्वस्थ जीवन शैली विकल्प :

संतुलित आहार, नियमित व्यायाम और पर्याप्त नींद को प्राथमिकता देने से समग्र स्वास्थ्य में योगदान हो सकता है और दौरे की आवृत्ति कम हो सकती है।

तनाव में कमी :

तनाव कई व्यक्तियों के लिए दौरे का एक ज्ञात ट्रिगर है। माइंडफुलनेस, विश्राम व्यायाम और योग जैसी तकनीकें तनाव के स्तर को प्रबंधित करने में मदद कर सकती है।

पर्याप्त नींद:

एक सतत नींद कार्यक्रम बनाए रखना और गुणवत्तापूर्ण नींद सुनिश्चित करना आवश्यक है। नींद की कमी से दौरे पड़ने का खतरा बढ़ सकता है।

जब्ती प्रतिक्रिया योजनाएँ :

दौरे पड़ने पर उनसे निपटने के लिए एक योजना विकसित करने से सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है। इसमें परिवार, दोस्तों और सहकर्मियों को दौरे के दौरान सहायता करने के तरीके के बारे में शिक्षित करना शामिल है।

वेगस तंत्रिका उत्तेजना (वीएनएस) :

कुछ मामलों में, मस्तिष्क में विद्युत आवेग भेजकर दौरों को रोकने में मदद के लिए एक वीएनएस उपकरण प्रत्यारोपित किया जा सकता है।

केटोजेनिक आहार :

दवा-प्रतिरोधी मिर्गी से पीड़ित कुछ व्यक्तियों को केटोजेनिक आहार से लाभ हो सकता है, जिसमें वसा अधिक और कार्बोहाइड्रेट कम होता है। यह आहार कुछ लोगों के लिए दौरे को नियंत्रित करने में मदद कर सकता है।

शल्य चिकित्सा :

दवा-प्रतिरोधी मिर्गी से पीड़ित लोगों के लिए, मस्तिष्क में दौरे के फोकस को हटाने या डिस्कनेक्ट करने के लिए सर्जिकल विकल्पों पर विचार किया जा सकता है।

ध्यान रखें :

अगर मिर्गी का दौरा काफी खतरनाक पड़ रहा है तो इससे बचाव के लिए आपको झावर हॉस्पिटल का चयन करना चाहिए। और ध्यान रहें इसके दौरे को कृपया नज़रअंदाज़ करने की कोशिश न करें वरना इसका खतरा आपके साथ और लोगों को भी हो सकता है।

निष्कर्ष :

मिर्गी और मिर्गी के दौरे विभिन्न रूपों में आते है, प्रत्येक के लिए रोकथाम और प्रबंधन के लिए अनुरूप दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है। जबकि दवाएं दौरे के नियंत्रण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जीवनशैली में बदलाव, तनाव प्रबंधन और ट्रिगर्स के बारे में जागरूकता भी उतनी ही आवश्यक है। स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों के साथ मिलकर काम करना एक प्रभावी दौरे की रोकथाम योजना विकसित करने की कुंजी है जो व्यक्तिगत आवश्यकताओं के अनुरूप है और मिर्गी से पीड़ित लोगों के लिए जीवन की गुणवत्ता में सुधार करती है।

 

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आंत माइक्रोबायोम और मानसिक स्वास्थ्य के कारण हमारे सेहत पर किस तरह का असर दिखता है ?

हमारा आंत माइक्रोबायोम, हमारे पाचन तंत्र में रहने वाले खरबों सूक्ष्मजीवों का संग्रह है, ये हमारे समग्र स्वास्थ्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। हैरानी की बात यह है कि यह जटिल पारिस्थितिकी तंत्र हमारे मानसिक कल्याण पर भी काफी प्रभाव डालते है। आंत माइक्रोबायोम और मानसिक स्वास्थ्य के बीच संबंध अनुसंधान का एक उभरता हुआ क्षेत्र है जो हमारे मनोदशा, भावनाओं और मानसिक स्थिति पर हमारे आंत स्वास्थ्य के गहरे प्रभाव पर प्रकाश डाल रहा है ;

आंत माइक्रोबायोम और मानसिक स्वास्थ्य का आपसी संबंध ! 

  • आंत माइक्रोबायोम मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने का एक प्रमुख तरीका न्यूरोट्रांसमीटर का उत्पादन है। न्यूरोट्रांसमीटर रासायनिक संदेशवाहक है, जो मस्तिष्क में संकेत संचारित करते है, जो हमारी भावनाओं और व्यवहार को प्रभावित करते है। आंत माइक्रोबायोम सेरोटोनिन और डोपामाइन सहित विभिन्न न्यूरोट्रांसमीटर का उत्पादन करते है, जो मूड को विनियमित करने के लिए महत्वपूर्ण है। जब अस्वास्थ्यकर आंत माइक्रोबायोम के कारण इन न्यूरोट्रांसमीटरों का संतुलन गड़बड़ा जाता है, तो इससे अवसाद और चिंता जैसे मूड संबंधी विकार हो सकते है।
  • इसके अलावा, आंत माइक्रोबायोम प्रतिरक्षा प्रणाली के कामकाज में भूमिका निभाते है। एक स्वस्थ आंत माइक्रोबायोम पुरानी सूजन को रोककर संतुलित प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया बनाए रखने में मदद करते है। पुरानी सूजन को अवसाद और सिज़ोफ्रेनिया सहित विभिन्न मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों से जोड़ा गया है। इसलिए, एक असंतुलित आंत माइक्रोबायोम संभावित रूप से इन विकारों के विकास में योगदान कर सकता है।
  • वहीं तनाव मानसिक स्वास्थ्य का एक और पहलू है जो आंत माइक्रोबायोम से निकटता से जुड़ा हुआ है। जब हम तनावग्रस्त होते है, तो हमारा शरीर कोर्टिसोल जैसे हार्मोन जारी करता है, जो आंत माइक्रोबायोम संरचना को प्रभावित कर सकते है। आंत माइक्रोबायोम में यह तनाव-प्रेरित परिवर्तन, बदले में, तनाव और चिंता को बढ़ा सकता है, जिससे एक दुष्चक्र बन सकता है। तनाव को ठीक करने के लिए लुधियाना में बेस्ट न्यूरोलॉजिस्ट की सलाह लें और साथ ही संतुलित आहार और जीवनशैली के माध्यम से स्वस्थ आंत माइक्रोबायोम का पोषण करना इस चक्र को तोड़ने और बेहतर मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है।
  • आहार आंत के माइक्रोबायोम को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। फाइबर, फलों, सब्जियों और प्रोबायोटिक्स से भरपूर आहार आंत में लाभकारी बैक्टीरिया के विकास को बढ़ावा दे सकते है। ये अच्छे बैक्टीरिया शॉर्ट-चेन फैटी एसिड का उत्पादन करते है, जिनका मानसिक स्वास्थ्य पर सुरक्षात्मक प्रभाव देखा गया है। इसके विपरीत, प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों और शर्करा से भरपूर आहार से हानिकारक बैक्टीरिया की अत्यधिक वृद्धि हो सकती है, जिससे संभावित रूप से मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा बढ़ सकता है।
  • इसके अलावा, आंत-मस्तिष्क अक्ष, आंत और मस्तिष्क को जोड़ने वाली एक दूसरी संचार प्रणाली, जो इस संबंध में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। आंत तंत्रिका तंत्र और आंत हार्मोन की रिहाई सहित विभिन्न मार्गों के माध्यम से मस्तिष्क को संकेत भेजती है। ये संकेत हमारे मूड, व्यवहार और यहां तक कि हमारी भूख को भी प्रभावित कर सकते है। इसके विपरीत, मस्तिष्क आंत को संकेत भी भेज सकता है, जिससे उसके कार्य और संरचना पर असर पड़ता है।
  • मानसिक स्वास्थ्य महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है आंत संबंधी समस्याओं का समाधान करने के लिए इसलिए आपके दिमाग में किसी भी तरह की समस्या का उत्पन्न नहीं होना चाहिए और किसी कारण ये समस्या हो भी जाए उत्पन्न तो इसके लिए आपको लुधियाना में बेस्ट न्यूरोसर्जन का चयन करना चाहिए। 
  • वहीं कुछ शोधकर्ता मानसिक स्वास्थ्य में सुधार के लिए प्रोबायोटिक्स और प्रीबायोटिक्स के उपयोग की संभावना तलाश रहे है। प्रोबायोटिक्स लाभकारी बैक्टीरिया होते है जिन्हें पूरक या किण्वित खाद्य पदार्थों जैसे दही और किमची के माध्यम से ग्रहण किया जा सकता है। ये प्रोबायोटिक्स आंत माइक्रोबायोम में एक स्वस्थ संतुलन बहाल करने में मदद कर सकते है, संभावित रूप से अवसाद और चिंता के लक्षणों को कम कर सकते है। दूसरी ओर, प्रीबायोटिक्स आहार फाइबर है जो आंत में लाभकारी बैक्टीरिया को पोषण देते है, और साथ ही उनकी वृद्धि और गतिविधि को बढ़ावा देते है।

आंत माइक्रोबायोम और मानसिक स्वास्थ्य के इलाज के लिए बेस्ट हॉस्पिटल !

आंत माइक्रोबायोम या पेट संबंधी समस्या तब होती है मस्तिष्क हमारा जब अस्वास्थ्य होता है। इसलिए जरूरी है की मस्तिष्क का अच्छे से ध्यान रखें। और समस्या ज्यादा होने पर झावर हॉस्पिटल का चयन करें।

निष्कर्ष :

हमारे आंत और मस्तिष्क के बीच का जटिल संबंध तेजी से स्पष्ट होता जा रहा है। संतुलित आहार के माध्यम से स्वस्थ आंत माइक्रोबायोम को बनाए रखना, तनाव का प्रबंधन करना और प्रोबायोटिक और प्रीबायोटिक की खुराक पर विचार करना मानसिक कल्याण में सुधार के लिए नए रास्ते पेश कर सकता है।

तो, अगली बार जब आप अपने मानसिक स्वास्थ्य पर विचार कर रहे हों, तो अपने पेट की स्थिति पर विचार करना याद रखें, क्युकि यह एक बेहतरीन दृष्टिकोण की कुंजी हो सकता है।

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