गंभीर सिरदर्द बन सकता है जानलेवा, जाने डॉक्टर द्वारा बताए गए के ऐसे लक्षण जिसका जानना है बेहद ज़रूरी

सिरदर्द कई कारणों से होने लगता है | ज्यादातर मामलों में यह सिरदर्द अपने आप ही ठीक हो जाता है या फिर पेनकिलर के सेवन से कम हो जाता है | अगर आपको लगा रहा है की आपका सिरदर्द सामान्य नहीं है तो तुरंत ही डॉक्टर के पास जाकर उसकी जाँच करवाएं |  

 

न्यूरोमास्टर झावर हॉस्पिटल के सीनियर कंसल्टेंट डॉक्टर सुखदीप सिंह झावर ने बताया कि सिरदर्द होना एक कॉमन  समस्या है जिससे हर वर्ग के लोग गुजरते है | ज्यादातर मामलों में सिरदर्द नार्मल वजह से होता है, लेकिन यदि आपके सामने  लगातार भयानक सिरदर्द के लक्षण सामने आ रहे है तो इसे बिलकुल भी नज़रअंदाज़ न करे और तुरंत ही डॉक्टर के पास जाएं | आइये जानते है भयंकर सिरदर्द की वजह से कौन से परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है :- 

 

डॉक्टर सुखदीप सिंह झावर ने बताया कि कई सिरदर्द ऐसे भी होते है जो सामान्य तौर पर इतने सीरियस नहीं होते | यह सिरदर्द की कॉमन वजह माइग्रेन और टेंशन लेना है | जिससे ज्यादा कुछ सीरियस दिक्कत नहीं होती है, लेकिन बाल झड़ने की समस्या उत्पन्न हो जाती है | उन्होंने यह भी बताया की ज़रूरी नहीं होता की हर सिरदर्द की वजह कॉमन ही हो | अगर सही समय पर इलाज करवाया गया तो इसकी वजह से आपको शरीरक रूप से कई दिक्कतों का समाना करना पड़ सकता है, यहाँ तक मौत भी हो सकती है | आइये जानते है सिरदर्द के लक्षणों के बारे में :- 

 

  1. सबसे खतरनाक सिरदर्द सबाराकनॉइड हैमरेज की कारण होता है | 
  2. एक ऐसा सिरदर्द जिससे पीड़ित व्यक्ति नींद से जाग जाता है या फिर सुबह जगाने पर बहुत तेज़ सिरदर्द होना, उलटी होना और देखने में दिक्कत होना, इन लक्षणों की वजह से ब्रेन ट्यूमर हो सकता है | 
  3. सिरदर्द के साथ-साथ बुखार या दौरे पड़ना, यह इंसेफेलाइटिस या ब्रेन फीवर के लक्षण हो सकते है | 
  4. ऐसा सिरदर्द जिसमे आपको बुखार के साथ कुछ भी समझ न आये तो यह मेनिनजाइटिस होने के लक्षण हो सकते है |  
  5. 50 की उम्र के बाद लोगों को सिरदर्द होना  
  6. ऐसे सिरदर्द जो धीरे-धीरे बढ़ने लगे वह दिमाग में ब्लीडिंग या फिर ब्रेन ट्यूमर की वजह से हो सकता है | 
  7. सिरदर्द का लगातार 72 घंटे से भी अधिक चलना | 
  8. ऐसे सिरदर्द होना जिस पर पेनकिलर का कोई असर न पड़ना | 
  9. हाल ही में सिरदर्द शुरू हुआ है, लेकिन अब बढ़ते ही जा रहा है | 
  10. हाथ और पैरों में कमज़ोरी का अनुभव होने के साथ सिरदर्द होना, यह स्ट्रोक होने के लक्षण हो सकते है | 

 

ऊपर बताए गए 10 लक्षणों को कभी भी नज़र अंदाज़ बिलकुल भी ना करे लक्षण दिखते ही तुरंत डॉक्टर से संपर्क करे | अगर आप ऐसे ही न्यूरोलॉजिकल कंडीशंस से गुजर रहे है और इलाज करवानां चाहते है तो इसके लिए आप न्यूरोमास्टर झावर हॉस्पिटल से परामर्श कर सकते है | इस संस्था के सीनियर कंसल्टेंट डॉक्टर सुखदीप सिंह झावर न्यूरोलॉजिस्ट में एक्सपर्ट है जो इस समस्या को कम करने में आपकी मदद कर सकते है |  

 

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क्या है सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस और कैसे करें इसका उपचार ?

सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस जिसे गर्दन में गठिया भी कहा जाता है, जिसके कारण आपके गर्दन में चोट अकड़न और दर्द का अनुभव हो सकता है | आज के दौर सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस का कोई निश्चित इलाज नहीं है लेकिन स्वास्थ्य सेवा प्रदाता की मदद से इस समस्या को खराब होने में या फिर रोकने में मदद मिल सकती है | आइये जानते है सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस के बारे में विस्तारपूवर्क से :- 

न्यूरोमास्टर झावर हॉस्पिटल के सीनियर कंसल्टेंट डॉक्टर सुखदीप झावर ने अपने यूट्यूब चैनल में पोस्ट एक वीडियो में इस बात का जिक्र किया की सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस एक सामान्य शब्द का मेल है, जिसमे सर्वाइकल आपकी गर्दन के सात खड़ी हड्डियों की उल्लेखना करता है और स्पोंडिलोसिस तब होता है जब आपके शरीर की रीढ़ की हड्डिया घिसने लग जाती  है | इस समस्या को ऑस्टियोऑर्थराइट्स या फिर गर्दन में गठिया के नाम से भी जाना जाता है | 

सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस से पीड़ित व्यक्ति को अक्सर गर्दन में चोट, अकड़न और दर्द होने की शिकायत रहती है | यह समस्या इतनी आम है की बढ़ती उम्र के साथ सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस का उत्पन्न होना स्वाभाविक है | बढ़ती उम्र के साथ शरीर पर भी काफी बदलाव आते है, जिसमे से एक है रीढ़ की हड्डियों में बदलाव और घिसाव होना | यह समस्या आम-तौर पर तब बढ़ता है जब किसी व्यक्ति की उम्र 30 वर्ष से पार चली जाती है | 60 की उम्र तक तो लगभग 10 में 9 लोग इस सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस समस्या का शिकार हो जाते है | आइये जानते है इसके मुख्य लक्षण और कारण क्या है :- 

 

सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस के मुख्य लक्षण क्या है ? 

आम-तौर पर सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस की समस्या बिना किसी लक्षण से भी हो सकता है, इसके अलावा कई मामलों में लक्षण देखने को भी मिल जाते है जिसमे शामिल है :- 

  • गर्दन में दर्द होना 
  • गर्दन का अकड़ जाना 
  • आपकी गर्दन में गांठ या उभर का आना
  • मांसपेशियों में ऐंठन आना 
  • जब गर्दन को हिलाते हो तो पॉप, क्लिक और पीसने की आवाज़ आती है | 
  • चक्कर आने लगता है |  
  • सिरदर्द बहुत होता है | 

 

सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस के मुख्य कारण क्या है ?

यह समस्या होने का सबसे आम कारण है, रीढ़ की हड्डियों में परिवर्तन आना जो उम्र बढ़ने के साथ-साथ होता है | इसके अलावा चिकित्सा संबंधी परिवर्तन स्थितियां भी शामिल होती है, जो समय के साथ-साथ बढ़ती रहती है, जैसे की :- 

 

  • 60 वर्ष या फिर उससे भी अधिक उम्र का होना 
  • धूम्रपान या फिर शराब जैसे नशीली पदार्थ का सेवन करना 
  • ऐसा काम करना जिसे आपको पूरा दिन निचे देखना पड़े
  • वजनदार वस्तु को उठाने के समय गर्दन में दबाव डालना 
  • इस समस्या का पारिवारिक इतिहास होना 
  • गर्दन में लगी पुरानी चोट के कारण 

 

यदि आप भी इस समस्या से जूझ रहे है तो बेहतर है किसी अच्छे डॉक्टर के पास जाएं और अच्छे से इलाज करवाएं, ताकि समय रहते इस समस्या को कम करने की मदद मिल सके | इससे संबंधित कोई भी जानकारी या फिर इलाज के लिए आप न्यूरोमास्टर झावर हॉस्पिटल  से परामर्श कर सकते है, यहाँ के डॉक्टर सुखदीप झावर ब्रेन और स्पाइन के न्यूरो सर्जन में स्पेशलिस्ट है जो इस समस्या को कम करने में आपकी मदद कर सकते है |

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आयरन की कमी से मानसिक स्वास्थ्य पर काफी बुरा असर पड़ता है, जाने इसके क्या है लक्षण

आयरन मानव के शरीर के लिए बेहद ज़रूरी मिनरल होता है, जो कई महतवपूर्ण कार्य में अपनी विशेष भूमिका निभाते है | दरअसल आयरन शरीर में लाल रक्त कोशिकाएं की उत्पादन में सहायता करते है, जो पूरे शरीर में ऑक्सीजन पहुंचने का कार्य करती है | जहाँ आयरन मासपेशिओं के कार्य में, प्रतिरक्षा प्रणाली के लिए ज़रूरी होता है, वही यह मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी बेहद ज़रूरी होता है | 

 

आयरन की कमी से एनीमिया जैसे समस्या हो सकती है, इस स्थिति में शरीर को पर्याप्त लाल रक्त कोशिकाएं नहीं मिलती, जिस वजह से शरीर को नियमित ऑक्सीजन प्राप्त नहीं होता  | एनीमिया के मुख्य लक्षण है, थकान महसूस होने, कमजोरी, साँस लेने में तक़लीफ होना, सिरदर्द होना, चक्कर आना आदि | आयरन की कमी से मानसिक स्वास्थ्य में भी काफी बुरा असर पड़ता है | 

 

आयरन की  कमी से अवसाद और चिंता जैसे मानसिक से जुड़ी समस्या उत्पन्न हो जाती है | ऐसा इसलिए होता है क्योंकि आयरन सेरोटोनिन और डोपामाइन जैसे न्यूरोट्रांसमीटर की उत्पादन में सहायता करते है जो कि मूड को नियंत्रित करने का कार्य करता है और यह मस्तिष्क के स्वास्थ्य  के लिए बेहद आवश्यक होता है | आयरन की कमी से इन न्यूरोट्रांस्मीटर की उत्पादना कम हो सकती है, जिस वजह से अवसाद और चिंता जैसे समस्या को बढ़ावा मिल सकता है | 

 

आयरन की कमी को पूरा करने के आपको पौष्टिक तत्व और आयरन से भरपूर खाद्य पदार्थ का सेवन कर सकते है, जैसे की:- 

 

  • ब्रोकोली
  • हरे पत्ते वाली सब्जियां 
  • साबुत अनाज 
  • मांस 
  • मछली 
  • दाल 
  • बीन्स 
  • टोफू  
  • फल 

 

आयरन के अवशोषण को बढ़ाने के लिए विटामिन सी से भरपूर खाद पदार्थों का सेवन भी कर सकते है, जैसे की संतरे, निम्बू का रास,आवला आदि | अगर आपको लग रहा है की आपके शरीर में आयरन की कमी हो गयी है, घबराएं नहीं तुरंत डॉक्टर के पास जाएं और उनसे बात करे | वह आपके शरीर में आयरन के स्तर की जाँच-पड़ताल करके इसकी कमी को पूरा करने में आपकी मदद करेंगे | इसके लिए आप न्यूरो मास्टर झावर हॉस्पिटल का चयन कर सकते है | इस संस्था के डॉक्टर सुखदीप झावर न्यूरोलॉजिस्ट में एक्सपर्ट है और इन्हे 15 सालों का तज़र्बा है |  

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माइग्रेन को कम करने के लिए बेहद ही आसान घरेलु नुस्खा,जो इस समस्या को करे जड़ से ख़तम

अगर आप भी गंभीर सिरदर्द और माइग्रेन जैसी समस्या से पीड़ित है तो ऐसे ही कुछ घरेलु उपचार का इस्तेमाल करके इस समस्या से छुटकारा पा सकते है  | यह घरेलू उपचार बहुत ही असरदार होते है इसलिए इस उपाय को एक बार ज़रूर आज़माना चाहिए | हलाकि इस उपाय का उपयोग करने से पहले एकबार डॉक्टर से सलाह ज़रूर ले |

माइग्रेन  को कम करने के लिए घरेलु उपचार:- 

 – माइग्रेन की समस्या से राहत पाने के लिए भीगे हुए किशमिश का सेवन कर सकते है , इससे न सिर्फ सिरदर्द से राहत मिलेगी बल्कि उल्टी और मतली जैसे समस्या भी दूर हो जाएगी | 

– जीरे और इलायची से बनी चाय का सेवन करने से सिरदर्द की समस्या को कम किया जा सकता है | 

– आप जड़ी-बूटियों जैसे की  ब्राह्मी, शंखपुष्पी, यष्टिमधु आदि घी के साथ सेवन कर सकते हैं | इसमें कई तरह से पोषक तत्व पाए जाते है, जो शरीर के साथ-साथ दिमाग के लिए भी बहुत ही फायदेमंद है | 

– माइग्रेन से पीड़ित मरीज को रोजाना स्वस्थ आहार और प्राणायाम करना चाहिए, जिससे आपके माइंड को विश्राम मिलता है | 

– थोड़े से काले चने को तवा पर गरम कर ले फिर उसको एक रुमाल में डाल कर अपनी आंखो के आप पास सेकई  करे |  इससे भी काफी राहत मिलती है | 

– माइग्रेन जैसी स्थिति मरीज को में प्रकाश और शोर जैसे पर्यावरण से बहुत दिक्कत होती है, इसलिए थोड़े समय के लिए ऐसे कमरे में बैठ जाओ जिस में न ही कोई प्रकाश और न हो शोर | इस प्रक्रिया से भी काफी रहत मिलती है | 

अगर फिर भी इस स्थिति में कोई सुधार नहीं आ रहा तो बेहतर है की आप एक्सपर्ट्स से सलाह ले | इस समस्या से संबंधित कोई भी जानकारी या अपने विचार विमर्श करना चाहते हो तो आप न्यूरो मास्टर झावर हॉस्पिटल का चयन कर सकते है | यहाँ के डॉक्टर सुखदीप झावर न्यूरोलॉजिस्ट में एक्सपर्ट है |

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मिर्गी का अटैक आने पर आजमाएं ये पांच घरेलू नुस्खे,जो अटैक के प्रभाव को काम करें

मिर्गी के अटैक को दीर्घकालिक स्थिति भी कहा जाता है, जिसमे अटैक बार-बार आते है | मिर्गी का अटैक 30 सेकंड या 2  मिनट से ज़यादा समय तक नहीं रहता  है | आपने कई बार अपने आस पास शख्स को देखा होगा की वह अचानक हिलने-डोलने लग जाता है या दौरे पड़ने लग जाता है और जमीन में गिर जाता है, उसे मिर्गी का अटैक या दौरे पड़ना कहते है | दरअसल क्या होता है की जब एक व्यक्ति का दिमाग कोशिकाओं के द्वारा एक दूसरे को मंदेश भेजते है है तो यह बदलाव काफी तेज़ी से होता है , जिसकी वजह से मिर्गी के दौरे पड़ते है | मिर्गी के अटैक से व्यक्ति का मुड़ने लगता है और शरीर बाहत तेज़ी से  कपने लगता है, यह कम से काम 30 सेकंड या 2 मिनट तक भी रह सकता है | आईए जानते है इसके मुख्य कारण है :- 

मिर्गी का अटैक के मुख्य कारण क्या है ?

मिर्गी का अटैक के मुख्य कारण व्यक्ति के मस्तिष्क में लगे कोई भी चोट से हो सकती है जैसे की :- 

  • दिमाग में किसी भी वजह से चोट लगना 
  • तम्बाकू, शराब या नशीली पदार्थों का लगातार 
  •  ट्यूमर  रोग  
  • दिमागी स्ट्रोक या रक्तस्त्राव 
  • अल्जाइमर रोग  
  • दिमाग में आये सूजन 

मिर्गी की वजह से व्यक्ति बेहोश भी हो सकता है, इसके साथ- साथ असामान्य भावना और झटके भी  उत्पन्न हो जाता है, जिसकी सही समय पर इलाज करना बहुत ही आवश्यक है नहीं तो यह दौरे आगे जाकर बहुत  बड़ी समस्या का कारण भी बन सकता है | आइये जानते है पांच ऐसे घरेले नुस्खे जो मिर्गी के अटैक के प्रभाव को कम करने में सहयता करता है:- 

पीड़ित की हवा मिलती रहे 

किसी भी व्यक्ति की अगर मिर्गी का अटैक या दौरे पड़ते है तो सबसे पहले ये सुनिश्चित करे की उस व्यति को हवा मिलती रहे, आगर उसने तंग कपड़े पहने है तो उसके कपडे ढीले कर दे | ध्यान रखे की उस व्यक्ति के गले में किसी भी तरह का तंग कपड़ा ना हो, अगर है तो उसे तुरंत निकल ही दे | ऐसा करने से रोगी को सुखद मिलने में सहायता मिलेगी | 

पीड़ित को नुकीली चीज़ों से दूर रखे     

पीड़ित व्यति के आस पास यह सुनिश्चित करे किसी भी तरह की कोई नुकीली चीजें न पड़ी हो जैसे की कांच टेबल या फर्नीचर,चाकू और कोई भी नुकीली चीज, जिसे व्यक्ति को चोट लग लग सकती है | दौरा ख़तम होते कोशिश करे आप उस व्यक्ति के साथ रहे और उसे सपोर्ट करे  | ऐसा करने से उस व्यक्ति को सहज मिलने में सहायता मिलती है | 

पीड़ित का मुँह साफ करे 

अटैक के बाद पीड़ित का मुँह वायुमार्ग के तरफ साफ़ करे, क्योंकि अटैक के दौरान पीड़ित व्यक्ति का जीभ पीछे के तरफ चला जाता है, जिसे सांस लेने में परेशानी होती है | 

पीड़ित के घरवालों को कांटेक्ट  करे  

ऐसे समय पर सबसे पहले पीड़ित व्यक्ति की परिवार सदस्यों को कांटेक्ट करे उसके लिए आप उस व्यक्ति के पास पड़े मोबाइल या बैग से इमरजेंसी कांटेक्ट भी ले सकते और इस बात का ध्यान रखे की उस व्यक्ति के मुँह पर किसी भी तरह की चाबी या पानी डालने का प्रयास ना करे | 

पीड़ित को डॉक्टर के पास ले जाये 

वैसे तोह मिर्गी का अटैक 30 सेकंड से 2 मिनट के बीच ही रहता है , इस दौरान आप डॉक्टर से सलाह लेना ही  उचित होगा, ताकि स्थिति गंभीर न हो सके या फिर डॉक्टर के पास ले जाना ही बेहतर रहेगा | इसकी जुडी सलाह आप न्यूरो मास्टर डॉक्टर सुखदीप झावर से भी ले सकते ह जो की न्यूरोलॉजिस्ट स्पेशलिस्ट है |

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तंत्रिका संबंधी विकार क्या है और इस दौरान किस तरह के लक्षण नज़र आते है ?

न्यूरोलॉजिकल विकार, जिन्हें न्यूरोलॉजिकल रोग या स्थितियों के रूप में भी जाना जाता है, चिकित्सा मुद्दों की एक व्यापक श्रेणी है जो तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करते है। तंत्रिका तंत्र विभिन्न शारीरिक कार्यों के समन्वय और विनियमन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है, जिससे इसके सामान्य कामकाज में महत्वपूर्ण चिंता का सामना करना पड़ सकता है। वहीं इस ब्लॉग पोस्ट में, हम न्यूरोलॉजिकल विकारों के बारे में गहराई से चर्चा करेंगे, उनके सामान्य लक्षणों और प्रभावित लोगों के सामने आने वाली चुनौतियों का भी पता लगाएंगे ;

तंत्रिका संबंधी विकारों के दौरान दिखने वाले लक्षण क्या है ?

सिर में दर्द और माइग्रेन की समस्या –

सबसे आम न्यूरोलॉजिकल लक्षणों में से एक सिरदर्द है। जबकि कभी-कभार होने वाला सिरदर्द आम है, लेकिन बार-बार होने वाला, गंभीर या पुराना सिरदर्द किसी अंतर्निहित न्यूरोलॉजिकल समस्या का संकेत हो सकता है। तीव्र धड़कते दर्द की विशेषता वाला माइग्रेन, एक अन्य सामान्य न्यूरोलॉजिकल लक्षण है।

दिमागी दौरे का पड़ना –

दौरे तब पड़ते है जब मस्तिष्क में असामान्य विद्युत गतिविधि होती है। वे आक्षेप, परिवर्तित चेतना और असामान्य गतिविधियों के रूप में प्रकट हो सकते है। मिर्गी एक प्रसिद्ध स्थिति है जिसमें बार-बार दौरे का पड़ना शामिल है।

शरीर का सुन्न होना –

शरीर में सुन्नता और झुनझुनी की अनुभूति, जिसे अक्सर पेरेस्टेसिया कहा जाता है, तंत्रिका क्षति या शिथिलता का संकेत हो सकता है। यह शरीर के किसी भी हिस्से को प्रभावित कर सकता है और अस्थायी या दीर्घकालिक हो सकता है।

मांसपेशियों में कमजोरी की समस्या –

मांसपेशियों की कमजोरी तंत्रिका संबंधी विकारों का एक और प्रचलित लक्षण है। यह हल्की कमजोरी से लेकर पूर्ण पक्षाघात तक हो सकता है और एक या अधिक अंगों को प्रभावित कर सकता है।

समन्वय की हानि का होना –

तंत्रिका संबंधी विकार समन्वय और संतुलन को प्रभावित कर सकते है। व्यक्तियों को अनाड़ीपन, चलने में कठिनाई और गिरने की प्रवृत्ति का अनुभव हो सकता है।

स्मृति समस्याओं का सामना –

अल्जाइमर रोग और मनोभ्रंश के अन्य रूपों सहित कई न्यूरोलॉजिकल स्थितियों में स्मृति समस्याएं और संज्ञानात्मक कमी आम है। ये विकार अल्पकालिक और दीर्घकालिक स्मृति को प्रभावित कर सकते है। अगर आपके सोचने समझने की समस्या ख़त्म हो गई तो इसके लिए आपको लुधियाना में बेस्ट न्यूरोसर्जन का चयन करना चाहिए।

दृष्टि में परिवर्तन का आना –

तंत्रिका संबंधी विकार भी दृष्टि को प्रभावित कर सकते है। तंत्रिका क्षति या शिथिलता के कारण धुंधली दृष्टि, दोहरी दृष्टि और दृश्य गड़बड़ी हो सकती है।

वाणी और भाषा संबंधी कठिनाइयाँ –

भाषा बोलने या समझने में कठिनाई तंत्रिका संबंधी विकार का संकेत हो सकती है। इसमें अस्पष्ट वाणी, शब्दों को ढूंढने में कठिनाई या ख़राब समझ शामिल हो सकते है।

चक्कर आना और वर्टिगो के संकेत –

चक्कर आना और सिर घूमना, जिसकी विशेषता चक्कर आने जैसी अनुभूति है, जिससे आंतरिक कान की समस्याओं या मस्तिष्क के संतुलन केंद्रों में गड़बड़ी के परिणामस्वरूप हो सकते है।

निगलने में कठिनाई का सामना –

डिस्फेगिया, या निगलने में कठिनाई, तब हो सकती है जब तंत्रिका संबंधी विकार निगलने की प्रक्रिया में शामिल मांसपेशियों और तंत्रिकाओं को प्रभावित करते है।

मूड और व्यवहार में बदलाव का आना –

तंत्रिका संबंधी विकार मूड और व्यवहार को प्रभावित कर सकते है। व्यक्तियों को अवसाद, चिंता, चिड़चिड़ापन या व्यक्तित्व परिवर्तन का अनुभव हो सकता है।

थकान की समस्या –

क्रोनिक थकान कई तंत्रिका संबंधी विकारों का एक सामान्य लक्षण है। यह किसी व्यक्ति के जीवन की गुणवत्ता पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है।

झटके लगना –

झटके में शरीर के एक या अधिक अंगों का हिलना शामिल होता है और आमतौर पर पार्किंसंस रोग जैसी स्थितियों से जुड़ा होता है।

नींद संबंधी परेशानियां –

अनिद्रा और अत्यधिक दिन की नींद सहित नींद की गड़बड़ी, स्लीप एपनिया या रेस्टलेस लेग सिंड्रोम जैसे न्यूरोलॉजिकल विकारों से जुड़ी हो सकती है।

तंत्रिका संबंधी विकार क्या है ?

  • न्यूरोलॉजिकल विकार उम्र, लिंग या पृष्ठभूमि की परवाह किए बिना किसी को भी प्रभावित कर सकती है। इन विकारों में हल्के और प्रबंधनीय से लेकर गंभीर और जीवन-परिवर्तनकारी स्थितियों की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल है। यद्यपि कई तंत्रिका संबंधी विकार है, और वे अक्सर सामान्य लक्षण साझा करते है, जो विभिन्न तरीकों से प्रकट हो सकते है।
  • तंत्रिका संबंधी विकारों का एक सामान्य लक्षण मांसपेशियों में कमजोरी या पक्षाघात है। इन विकारों से पीड़ित लोगों को अपने अंगों को हिलाने में कठिनाई का अनुभव हो सकता है, जिससे रोजमर्रा के काम करने की उनकी क्षमता प्रभावित हो सकती है। उदाहरण के लिए, मल्टीपल स्केलेरोसिस (एमएस) या एमियोट्रोफिक लेटरल स्केलेरोसिस (एएलएस) जैसी स्थितियां मांसपेशियों में कमजोरी का कारण बन सकती है, जिससे गतिशीलता संबंधी समस्याएं हो सकती है और रोगी के जीवन की गुणवत्ता ख़राब हो सकती है।
  • तंत्रिका संबंधी विकारों में संवेदी गड़बड़ी भी आम है। इसमें शरीर के विभिन्न हिस्सों में सुन्नता, झुनझुनी या संवेदना की कमी जैसे लक्षण शामिल है। उदाहरण के लिए, परिधीय न्यूरोपैथी वाले व्यक्तियों को अपने हाथों और पैरों में झुनझुनी या सुन्नता का अनुभव हो सकता है, जिससे संतुलन और समन्वय में कठिनाई हो सकती है।
  • इसके अलावा, तंत्रिका संबंधी विकार अक्सर संज्ञानात्मक हानि के रूप में प्रकट होते है। याददाश्त संबंधी समस्याएं, एकाग्रता में कठिनाई और व्यवहार या व्यक्तित्व में बदलाव अक्सर देखे जाते है। अल्जाइमर रोग, एक तंत्रिका संबंधी विकार जो मुख्य रूप से वृद्ध वयस्कों को प्रभावित करता है, अपनी प्रगतिशील संज्ञानात्मक गिरावट के लिए प्रसिद्ध है, जिससे स्मृति हानि और व्यवहार में परिवर्तन आम है।

तंत्रिका संबंधी विकारों से बचाव के लिए आपको लुधियाना में बेस्ट न्यूरोलॉजिस्ट का चयन करना चाहिए।

तंत्रिका संबंधी विकार के लिए बेस्ट हॉस्पिटल !

तंत्रिका संबंधी विकार व्यक्ति को कई सारी शारीरक और मानसिक बीमारियों का सामना करवा सकती है। इसलिए जरुरी है की इसमें किसी भी तरह के लक्षण नज़र आए तो आपको इससे बचाव के लिए झावर हॉस्पिटल का चयन करना चाहिए।  

निष्कर्ष :

तंत्रिका संबंधी विकारों में कई प्रकार की स्थितियाँ शामिल होती है, जो तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करती है, जिससे विभिन्न प्रकार के लक्षण उत्पन्न होते है। ये लक्षण मांसपेशियों की कमजोरी और कंपकंपी से लेकर संज्ञानात्मक हानि और मूड में बदलाव तक ला सकते है। 

यदि आप या आपका कोई परिचित इनमें से किसी भी लक्षण का अनुभव कर रहा है, तो इन स्थितियों से प्रभावित लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए चिकित्सा सलाह और सहायता लेना आवश्यक है।

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जानिए नस की बीमारी होने पर खुद से दवा लेना कैसे भारी पड़ सकता है ?

नसों का हमारे शरीर में महत्वपूर्ण स्थान होता है, क्युकी ये हमारे शरीर की रक्त की धाराओं को सम्पूर्ण शरीर में प्रयाप्त मात्रा में पहुंचाती है, पर जरा सोचें अगर किसी कारण इनमे किसी तरह की परेशानी आ जाए तो कैसे हम इस तरह की समस्या से खुद का बचाव कर सकते है। वही बहुत से लोगों के मन में आज ये सवाल होगा की सामान्य नसों में परेशानी होने पर खुद से दवाई ले या न ले, तो ऐसे प्रश्नो के बारे में हम आज के आर्टिकल में चर्चा करेंगे, इसलिए आर्टिकल को अंत तक जरूर पढ़े ;

नस क्या होते है ?

  • नसें रक्त वाहिकाएं होती हैं जो रक्त को हृदय की ओर ले जाती है। वही मानव शरीर में दो प्रकार की नसें होती है, पहली गहरी नसें और दूसरी सतही नसें। 
  • वही गहरी नसों की बात करें तो ये नसें शरीर के भीतर गहरी स्थित होती है, जबकि सतही नसें त्वचा की सतह के करीब स्थित होती हैं और अक्सर दिखाई देती हैं।

नसों की कमजोरी क्या है ?

  • नसों की कमजोरी को मेडिकल के टर्म में न्यूरोपैथी के नाम से जाना जाता है। वहीं, बात जब संपूर्ण शरीर की नसों की कमजोरी की हो रही हो, तो उसके लिए मेडिकली टर्म के रूप में इसे पेरिफेरल न्यूरोपैथी कहा जाता है। 
  • नसों की बात की जाए तो ये शरीर में किसी कम्प्यूटर के वायर की तरह काम करती है, जो शरीर की विभिन्न क्रियाओं को करने के लिए दिमाग तक संदेश पहुंचाती है। वही जब किसी वजह से ये नसें दिमाग तक ठीक तरह से संदेश पहुंचाने में विफल होती है या फिर नहीं पहुंचा पाती है, तो इसे ही नसों की कमजोरी के रूप में जाना जाता है। 

नसों में कमजोरी के लक्षण है ?

  • स्मरण शक्ति में क्षति का पहुंचना। 
  • सिर दर्द की समस्या। 
  • मांसपेशियों में अकड़न की समस्या। 
  • पीठ में दर्द की समस्या। 
  • झटके या दौरे का पड़ना। 

कारण क्या है नसों के कमजोरी के ?

  • किसी तरह की बीमारी का होना। 
  • किसी वजह से नसों पर दबाव का पड़ना। 
  • जेनेटिक समस्या का होना। 
  • दवाओं के दुष्प्रभाव, पोषण तत्वों में कमी या विषाक्त पदार्थ के कारण भी ऐसी समस्या हो सकती है। 

नसों में कमजोरी के कारणों के बारे में विस्तार से जानने के लिए लुधियाना में बेस्ट न्यूरोलॉजिस्ट का चयन करें। 

क्या नसों की बीमारी होने पर हम खुद से दवाई ले सकते है ?

  • नसों का हमारे शरीर में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है इसलिए अगर इनमे किसी भी तरह की समस्या आ जाए तो खुद से या किसी के कहने से दवा का सेवन न करें। बल्कि आपको नसों में कमजोरी महसूस हो रही है तो इसके लिए आप न्यूरो विशेषज्ञों से करें। 

नसों की कमजोरी को कैसे दूर किया जा सकता है ?

  • नियमित व्यायाम, उचित आराम, उचित स्वास्थ्य देखभाल की स्थिति और उचित और संतुलित आहार खाने से नसों की कमजोरी को ठीक किया जा सकता है।

नसों की कमजोरी की जाँच व इलाज के लिए बेस्ट हॉस्पिटल !

  • अगर आप भी नसों के कमजोरी की समस्या का सामना उपरोक्त जैसे कर रहें है तो इससे बचाव के लिए आपको झावर हॉस्पिटल का चयन करना चाहिए। 

निष्कर्ष :

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क्या है न्यूरोसर्जन और न्यूरोलॉजिस्ट के बीच का मत्वपूर्ण अंतर ?

न्यूरोलॉजिस्ट और न्यूरोसर्जन के बारे में तो अकसर सबने सुना होगा लेकिन इनके बीच के अंतर के बार्रे में बहुत कम लोगों को पता है। इसलिए आज के लेख में हम इन दोनों के बीच अंतर क्या है उसके बारे में बात करेंगे की आखिर इन दोनों का काम क्या होता है और अगर इनसे कोई ट्रीटमेंट करवाना हो तो कौन-से डॉक्टर को किस बीमारी के लिए चुने, तो शुरुआत करते है आर्टिकल की ;

न्यूरोसर्जन और न्यूरोलॉजिस्ट के बीच क्या अंतर है ?

  • न्यूरोलॉजिस्ट और न्यूरोसर्जन दोनों तंत्रिका प्रणाली विकारों का निदान और प्रबंधन करते है, लेकिन न्यूरोलॉजिस्ट सर्जरी नहीं करते हैं। न्यूरोलॉजिस्ट जटिल न्यूरोलॉजिकल निदान खोजने पर ध्यान केंद्रित करते हैं जिनका इलाज अन्य दवाओं या उपचारों के साथ किया जा सकता है।
  • जबकि एक न्यूरोसर्जन चिकित्सा समस्याओं के इलाज के लिए सर्जरी कर सकता है, न्यूरोलॉजिस्ट दवाओं और अन्य प्रक्रियाओं के साथ विशिष्ट स्थितियों का इलाज भी करते है। 
  • एक न्यूरोलॉजिस्ट और एक न्यूरोसर्जन दोनों ही ईईजी और एमआरआई जैसे जटिल न्यूरोलॉजिकल परीक्षण कर सकते हैं। फिर भी, केवल न्यूरोसर्जन ही स्थिति को ठीक करने के लिए सर्जरी करने के लिए निष्कर्षों का उपयोग कर सकते है, जबकि न्यूरोलॉजिस्ट केवल दवाओं का सुझाव दे सकते है या रोगी को देखभाल के लिए न्यूरोसर्जन के पास भेज सकते है।

तो अगर आपको ये जानना है की बीमारी के समय कौन सी दवाइयां आपको लेनी है तो इसके लिए आपको बेस्ट न्यूरोलॉजिस्ट लुधियाना का चयन करना चाहिए।

न्यूरोलॉजिस्ट किस चीज में माहिर होते है ?

अगर आपमें निम्न लक्षण नज़र आए तो इसके लिए आपको न्यूरोलॉजिस्ट का चयन करना चाहिए ;

  • लगातार चक्कर का आना। 
  • भावनाओं में बदलाव का आना। 
  • संतुलन के साथ कठिनाइयाँ। 
  • सिर दर्द की समस्या। 
  • भावनात्मक भ्रम। 
  • मांसपेशियों की थकान आदि। 

न्यूरोलॉजिस्ट दवाइयों की मदद से व्यक्ति का इलाज करते है और ये सर्जरी का चुनाव नहीं करते। 

न्यूरोसर्जन किस चीज में माहिर होते है?

अगर आपमें निम्न गंभीर लक्षण नज़र आए तो सर्जरी करवाने के लिए आपको न्यूरोसर्जन का चयन करना चाहिए ; 

  • इंडोवैस्कुलर रिपेयर करना। 
  • डिस्क हटाना। 
  • क्रानिओटोमी की समस्या। 
  • लम्बर पंक्चर समस्या की सर्जरी। 
  • अनुरिस्म रिपेयर आदि समस्याओं का न्यूरोसर्जन के द्वारा सर्जरी करके ठीक किया जाता है। 

न्यूरोसर्जन और न्यूरोलॉजिस्ट कौन-सी बीमारी का इलाज करते है ?

  • एक न्यूरोलॉजिस्ट मिर्गी, अल्जाइमर रोग, परिधीय तंत्रिका विकार और एएलएस जैसी न्यूरोलॉजिकल स्थितियों के इलाज में रुचि रखते हैं।
  • जबकि न्यूरोसर्जन मस्तिष्क की चोटों, ट्यूमर को हटाने और कार्पल टनल सिंड्रोम से निपटने में मदद करता है।

न्यूरोसर्जन और न्यूरोलॉजिस्ट की चयन के लिए बेहतरीन हॉस्पिटल ?

  • अगर आप अपनी बीमारी के इलाज और सर्जरी के लिए किसी बेहतरीन न्यूरोसर्जन और न्यूरोलॉजिस्ट का चयन करना चाहते है तो इसके लिए आप झावर ब्रेन एन्ड स्पाइन हॉस्पिटल का चयन कर सकते है।

एक न्यूरोसर्जन और न्यूरोलॉजिस्ट की शैक्षिक योग्यता क्या है ?

  • एक न्यूरोलॉजिस्ट बनने के लिए चार साल के प्री-मेडिकल स्कूल की आवश्यकता होती है, इसके बाद न्यूरोलॉजी में मेडिकल डिग्री और मूवमेंट, स्ट्रोक आदि में अतिरिक्त प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। 
  • वही न्यूरोसर्जन बनने का शैक्षिक मार्ग अधिक विस्तृत है, जिसके लिए चार साल के प्री-मेडिकल स्कूल और चार साल के मेडिकल स्कूल की आवश्यकता होती है।

निष्कर्ष :

उम्मीद करते है की आपने जान लिया होगा की आखिर क्या अंतर है न्यूरोसर्जन और न्यूरोलॉजिस्ट के बीच। तो भविष्य में अगर आपको किसी भी तरह की बीमारी होगी तो आपको ये सोचने की जरूरत नहीं होगी की आप कौन से डॉक्टर के पास जाए अपनी परेशानी के लिए।

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जानिए ब्रेन ट्यूमर के लक्षणों को नज़रअंदाज़ करना कैसे पड़ सकता है भारी !

कैंसर जिसका नाम सुनते ही लोगों के पैरों तले जमीन खिसक जाती है, और साथ ही ये काफी खतरनाक बीमारी में से एक मानी जाती है। वही अगर व्यक्ति को ब्रेन ट्यूमर हो जाए तो वो कैसे खुद का बचाव कर सकता है साथ ही कैंसर के लक्षणों को जानकर हम कैसे इसको पहचाने इसके बारे में आज के लेख में बात करेंगे, तो आप या आपके करीबियों में से कोई इस तरह की समस्या का सामना कर रहा है तो कैसे वो खुद को इस तरह की समस्या से बाहर निकाल सकता है इसके बारे में आज के आर्टिकल में बात करेंगे ;

क्या है दिमाग का कैंसर ?

ब्रेन ट्यूमर में दिमाग की कोशिकाएं जरूरत से ज्यादा तेजी से बढ़ने और फैलने लगती है, जिससे आस-पास मौजूद टीश्यूज और ऑर्गन डैमेज हो जाते है। और यही ख़राब हुए ऑर्गन आपमें कैंसर जैसे खतरनाक बीमारी को उत्पन्न करते है।

दिमाग के कैंसर का पता कैसे लगाए ?

  • दिमाग के कैंसर का पता लगाने के लिए आप न्यूरोलॉजिकल जांच, सीटी स्कैन, एमआरआई स्कैन, और पॉज़िट्रॉन एमिशन टोमोग्राफी (PET) स्कैन करवा सकते है। 
  • वही इन सभी जांचों में कैंसर कोशिकाओं की जांच के लिए मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी के चारों ओर तरल पदार्थ का एक छोटा सा नमूना एकत्र किया जाता है।

दिमाग के कैंसर का पता लगाने के बाद आप बेस्ट न्यूरोलॉजिस्ट लुधियाना का चयन भी कर सकते है।

ब्रेन ट्यूमर के कितने प्रकार है ?

सामान्यतः मस्तिष्क के कैंसर को दो भागों में बाटा जाता है;

  • पहला जिसे प्राइमरी कैंसर कहा जाता है और ये कैंसर दिमाग के जिस हिस्से में शुरू होता है, बस वहीं बढ़ता रहता है। 
  • जबकि सेकेंडरी कैंसर की बात करें तो इस कैंसर की शुरुआत शरीर के किसी एक हिस्से में होती है, जिसके बाद ये शरीर के दूसरे हिस्से जैसे- दिमाग, फेफड़े, ब्रेस्ट, किडनी, कोलोन और स्किन में फैल जाते है।

ब्रेन ट्यूमर के लक्षण क्या है ?

ब्रेन ट्यूमर के कुछ लक्षण हम निम्न प्रस्तुत कर रहें है ;

  • अगर आपको बिना किसी बीमारी के लगातार सिर में तेज दर्द रहता है तो ये ब्रेन ट्यूमर का लक्षण हो सकता है। 
  • चक्कर या उल्टी महसूस करना, हालांकि, ये लक्षण कई समय बाद देखने को मिलते है. लेकिन कई बार ब्रेन ट्यूमर के शुरुआत में ही ये लक्षण सामने आ जाते है, ऐसा कैंसर की कोशिकाओं का दिमाग में मौजूद फ्लूड के साथ मिक्स होने पर भी होता है। 
  • जब शरीर में कुछ बदलाव दिखने लगे जैसे याददाश्त का कमजोर होना, व्यक्तित्व में बदलाव दिखाई देने लगें तो ये भी ब्रेन ट्यूमर के लक्षण हो सकते है। 
  • इसके अलावा आप कैंसर के लक्षणों में धुंधली दृष्टि, का दोहरा दिखना जैसा कुछ मेहसूस कर सकते है।
  • एक हाथ या एक पैर का काम नहीं करना। 
  • शरीर और दिमाग का बैलेंस बना पाने में मुश्किल का सामना करना। 
  • बोलने में परेशानी का आना। 
  • उलझन महसूस करना आदि।

ब्रेन ट्यूमर से बचाव के लिए बेस्ट हॉस्पिटल !

अगर आप या आपके परिजन में से कोई भी इस घातक बीमारी का सामना कर रहें है या इस बीमारी के लक्षण उनमे नज़र आ रहें हो तो इससे बचाव के लिए आपको झावर हॉस्पिटल का चयन करना चाहिए, वही आपको बता दे की इस हॉस्पिटल में अनुभवी डॉक्टरों के द्वारा आधुनिक उपकरणों की मदद से मरीजों का इलाज किया जाता है। 

निष्कर्ष :

मस्तिष्क का कैंसर बहुत ही खतरनाक माना जाता है, क्युकि दिमाग ही एक ऐसा पार्ट होता है जिसके माध्यम से हमारा पूरा शरीर टिका हुआ हुआ है, इसलिए अगर आपको उपरोक्त में से सामान्य लक्षण भी आप में नज़र आए, तो जल्द ही डॉक्टर का चयन करें, वर्ना दिमागी कैंसर से आपकी जान भी जा सकती है।

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दिमाग की नस फटने से पहले पड़ता है छोटा अटैक, जानिए लक्षणों को पहचान कर हम इससे कैसे खुद का बचाव कर सकते है ?

न्यूरोलॉजिकल स्वास्थ्य के क्षेत्र में, चेतावनी संकेतों की सूक्ष्मताओं को समझना महत्वपूर्ण हो सकता है, खासकर जब मस्तिष्क धमनीविस्फार के संभावित खतरे की बात आती है। इससे पहले कि मस्तिष्क में कोई तंत्रिका किसी गंभीर बिंदु पर पहुंच जाए, वह आसन्न हमले का संकेत देने वाले सूक्ष्म संकेत प्रदर्शित कर सकती है। इन लक्षणों को पहचानने और सक्रिय उपाय करने से गंभीर परिणामों को रोकने में काफी मदद मिल सकती है। आइए इन संकेतकों की पहचान करें और समझें कि अपनी सुरक्षा कैसे करें ;

दिमागी छोटा अटैक क्या है ?  

ब्रेन स्ट्रोक की तरह छोटा अटैक भी दिमाग की नस ब्लॉक होने से आता है। वहीं कुछ रिपोर्ट के अनुसार इसकी वजह से दिमाग को ऑक्सीजन मिलना बंद हो जाते है। लेकिन ये डैमेज परमानेंट नहीं होती है और 24 घंटे में खुद ही ठीक हो जाती है।

दिमाग की नस फटने से पहले किस तरह के लक्षण नज़र आते है ?

  • आसन्न मस्तिष्क धमनीविस्फार के लक्षण हर व्यक्ति में अलग-अलग हो सकते है। हालाँकि, कुछ सामान्य संकेत प्रारंभिक चेतावनी दे सकते है। इन संकेतकों में अक्सर लगातार सिरदर्द शामिल होता है, जिसे आमतौर पर अचानक और गंभीर बताया जाता है। यह अनुभूति पिछले सिरदर्द के विपरीत हो सकते है, जिसकी तीव्रता असामान्य महसूस होती है। इसके साथ, व्यक्तियों को दृश्य गड़बड़ी का अनुभव हो सकता है, जैसे धुंधली दृष्टि या प्रकाश के प्रति संवेदनशीलता। ये लक्षण अचानक प्रकट हो सकते है या समय के साथ धीरे-धीरे खराब हो सकते है, जो चिंता का एक महत्वपूर्ण कारण बन सकते है।
  • एक अन्य प्रमुख संकेत गर्दन में दर्द या अकड़न की शुरुआत है, जो अक्सर आंखों के ऊपर और पीछे असुविधा या दर्द के साथ जुड़ा होता है। ये संवेदनाएँ रुक-रुक कर उठ सकती है या लगातार बनी रह सकती है। कुछ व्यक्तियों को ध्वनि के प्रति संवेदनशीलता, बोलने के पैटर्न में बदलाव या यहां तक कि व्यवहार में बदलाव का भी अनुभव हो सकता है जो उनके लिए असामान्य है। मतली और उल्टी, जिसका किसी अन्य स्पष्ट कारण से कोई संबंध नहीं है, जो ध्यान देने योग्य संकेत हो सकते है।
  • हालाँकि ये लक्षण व्यक्तिगत रूप से गैर-विशिष्ट या सौम्य लग सकते है, यह इन संकेतकों का संयोजन और दृढ़ता है जिस पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है। यदि किसी को ऐसे लक्षण अनुभव होते है, तो तत्काल चिकित्सा सहायता लेना महत्वपूर्ण हो जाता है। समय पर निदान और हस्तक्षेप धमनीविस्फार के टूटने और इसके संभावित विनाशकारी परिणामों को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। गंभीर मस्तिष्क की स्थिति होने पर आपको लुधियाना में क्लस्टर स्ट्रोक का इलाज जरूर से करवाना चाहिए।

दिमाग की नस फटने से पहले इसको कैसे रोके ?

  • हालाँकि, मस्तिष्क धमनीविस्फार को रोकना पूरी तरह से हमारे नियंत्रण में नहीं है, क्योंकि आनुवंशिकी, उम्र और पहले से मौजूद स्थितियों जैसे कारक इसके विकास में योगदान कर सकते है। फिर भी, कुछ जीवनशैली समायोजन और सावधानियां है, जो जोखिम को कम करने में सहायता कर सकती है। नियमित व्यायाम, स्वस्थ आहार बनाए रखना और रक्तचाप का प्रबंधन मौलिक निवारक उपाय है। धूम्रपान और अत्यधिक शराब के सेवन से बचना भी धमनीविस्फार के विकास के जोखिम को कम करने में महत्वपूर्ण है।
  • इसके अलावा, अपने स्वास्थ्य के प्रति सतर्क रहना अत्यावश्यक है। स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों के साथ नियमित जांच और परामर्श संभावित जोखिम कारकों की पहचान करने और उन्हें कम करने के लिए आवश्यक कदम उठाने में सहायता कर सकते है। व्यक्तिगत चिकित्सा इतिहास को समझना, खासकर यदि परिवार में एन्यूरिज्म चलता हो, सक्रिय उपाय करने और उचित चिकित्सा मार्गदर्शन प्राप्त करने में महत्वपूर्ण है।
  • तनाव प्रबंधन तकनीकें, जैसे कि माइंडफुलनेस, योग या ध्यान, भी एन्यूरिज्म के विकास के जोखिम को कम करने में भूमिका निभा सकते है, क्योंकि क्रोनिक तनाव उच्च रक्तचाप में योगदान कर सकता है, जो एन्यूरिज्म के लिए एक महत्वपूर्ण जोखिम कारक है।

दिमाग की नस फटने से पहले आप इससे कैसे खुद का बचाव कर सकते है इसके बारे में जानने के लिए आपको लुधियाना में बेस्ट न्यूरोलॉजिस्ट का चयन करना चाहिए।

दिमागी छोटे अटैक से बचाव के लिए किन बातों का रखें ध्यान !

  • धूम्रान और शराब का सेवन बंद कर दें।
  • ताजे फल, सब्जी और साबुत अनाज का सेवन करें।
  • शरीर का वजन कंट्रोल रखें।
  • नियमित एक्सरसाइज करें।
  • फैट का सेवन कम कर दें।
  • ​टाइप 2 डायबिटीज, हाई कोलेस्ट्रॉल, हाई बीपी जैसी बीमारियों की दवा लेते रहें।

मस्तिष्क के इलाज के लिए बेस्ट हॉस्पिटल !

अगर आप दिमागी दौरे या अटैक पड़ने की समस्या से खुद का बचाव करना चाहते है, तो इसके लिए आपको झावर हॉस्पिटल का चयन चाहिए। वहीं इस दौरान पड़ने वालें दौरे के लक्षणों को आपको नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए।

निष्कर्ष : 

मस्तिष्क धमनीविस्फार की संभावना कठिन लग सकती है, संभावित लक्षणों के बारे में जागरूक होना और आवश्यक सावधानी बरतने से गंभीर परिणामों को रोकने में काफी मदद मिल सकती है। चेतावनी के संकेतों को पहचानना, तुरंत चिकित्सा सहायता लेना और नियमित चिकित्सा जांच के साथ स्वस्थ जीवन शैली अपनाना मस्तिष्क धमनीविस्फार से जुड़े संभावित खतरों के खिलाफ हमारा कवच हो सकता है। इस स्थिति से जुड़े जोखिमों को कम करते हुए, अपने स्वास्थ्य और कल्याण को प्राथमिकता देना हमारे हाथ में है।

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