अपहासिया क्या होता है? डॉक्टर से जानें अपहासिया के लक्षण और इलाज

आज के समय में, लोग कई तरह की बीमारी से जूझ रहे हैं, चाहे वो दिमाग से संबंधित समस्या ही क्यों न हो। दरअसल, अपहासिया एक भाषाई बीमारी है, जो आम तौर पर, दिमाग से जुड़ी हुई है। अपहासिया जैसी समस्या लोगों के संचार करने की क्षमता को काफी ज्यादा प्रभावित करती है। इस तरह की स्थिति में एक व्यक्ति की मौखिक और लिखित दोनों प्रकार की भाषा बोलने, लिखने और समझने की क्षमता पर काफी ज्यादा असर पड़ता है। आपको बता दें, कि अपहासिया की समस्या ज्यादातर, लोगों को तब होती है, जब किसी दुर्घटना या फिर किसी और वजह से उसके सिर में चोट लग जाती है। पर आम तौर पर, इस तरह की स्थिति धीरे-धीरे होने वाले ब्रेन ट्यूमर की वजह भी बन सकती है। आपको बता दें, कि बहुत सारी स्थितियों पर, अपहासिया की गंभीरता निर्भर करती है, दरअसल, जिसमें किसी व्यक्ति के दिमाग को हुआ भारी नुकसान की वजह शामिल होती है। इस तरह की स्थिति में कई लोगों के मन में यह सवाल उठता है, कि आखिर अपहासिया क्या होता है और अगर इस तरह की समस्या किसी को हो जाये तो उसका क्या इलाज हो सकता है? तो आइये इस लेख के माध्यम से, इसके डॉक्टर से इसके बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे, कि आखिर अपहासिया क्या है, इसके लक्षण और इसका इलाज किस तरीके से संभव हो सकता है?

अपहासिया क्या होता है?

बता दें, कि ज्यादातर अपहासिया जैसी समस्या वयस्कों में देखने को मिलती है, आम तौर पर, जिनको स्ट्रोक जैसी समस्या हुई हो। दरअसल, इसके अलावा, अपहासिया जैसी समस्या ब्रेन ट्यूमर, संक्रमण, सिर में चोट या फिर डिमेंशिया की वजह से भी हो सकती है, आम तौर पर, जो आपके दिमाग पर काफी ज्यादा बुरा असर डालने का काम करता है। आपकी जानकारी के लिए आपको बता दें कि संयुक्त राज्य अमेरिका में, लगभग 1 मिलियन लोग अपहासिया जैसी समस्या का सामना कर रहे हैं। असल में, इस तरह की स्थिति के कारण आपके कुछ भी बोलने, लिखने और समझने की क्षमता बहुत ज्यादा प्रभावित होती है और इस वजह से आप इन कामों को करने में सफल नहीं हो पाते हैं। आम तौर पर, जिसकी वजह से आपके दिमाग को काफी ज्यादा नुकसान पहुंचता है, उसके लिए आपको विशेष चिकित्सकीय देखरेख करने की जरूरत होती है।

अपहासिया के लक्षण क्या होते हैं?

  1. इस तरह की स्थिति होने पर कम या फिर अधूरे शब्दों को बोलना।
  2. इस दौरान, बिना किसी मतलब की बातों को कहते रहना। 
  3. ज्यादातर इस तरह की स्थिति में व्यक्ति दूसरों की बातों को समझ नहीं पाता है। 
  4. बात करते वक्त या फिर कुछ भी लिखते वक्त अनजान शब्दों का इस्तेमाल करना। 
  5. बिना किसी मतलब की बातों को लिखते ही रहना। 

किन लोगों को है अपहासिया का ज्यादा खतरा होता है?

आम तौर पर, अपहासिया एक इस तरह की स्थिति या फिर समस्या है, जो किसी को भी प्रभावित या फिर हो सकती है। पर ज्यादातर इस तरह की समस्या का खतरा वयस्कों में देखा जा सकता है, क्योंकि यह उन वयस्कों को काफी ज्यादा प्रभावित करती है, जो गंभीर रूप से स्ट्रोक का शिकार होते हैं।

अपहासिया का इलाज

दरअसल, इस तरह की स्थिति का इलाज पीड़ित व्यक्ति की गंभीरता और स्थिति के आधार पर किया जाता है। आमतौर पर, इसके ज्यादातर मामलों में, इलाज के लिए भाषा थेरेपी जितनी जल्दी हो सके शुरू करनी चाहिए। इस तरह की समस्या के इलाज में, पीड़ित व्यक्ति के साथ कई तरह के अभ्यास किये जाते हैं, जिसमें मरीज को पढ़ाना, जो वे सुनते हैं उसे बार-बार दोहराना और लिखाना आदि शामिल होता है। इस तरह की कई थेरेपी के बाद और धीरे-धीरे मरीज की हालत में सुधार आने के बाद डॉक्टर उहने खुद अभ्यास करने और अपने दिमाग को एक्टिव रखने की सलाह प्रदान करते हैं। 

निष्कर्ष

अपहासिया एक भाषाई बीमारी है, जो दिमाग से जुड़ी होती है। ज्यादातर अपहासिया जैसी समस्या वयस्कों में देखने को मिलती है, जो गंभीर रूप से स्ट्रोक का शिकार होते हैं। अपहासिया लोगों के संचार करने की क्षमता को प्रभावित करती है, जिसमें मौखिक और लिखित दोनों प्रकार की भाषा बोलने, लिखने और समझने की क्षमता शामिल होती है। इस तरह की स्थिति में कम या फिर अधूरे शब्दों को बोलना, दूसरों की बातों को समझ न पाना और बिना किसी मतलब की बातों को लिखते ही रहना जैसे लक्षण नज़र आते ही आपको तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। दरअसल, इस तरह की स्थिति का इलाज पीड़ित व्यक्ति की गंभीरता और स्थिति के आधार पर किया जाता है। जिसमें कई तरह की थेरेपी शामिल होती हैं। अगर आपको भी इसके बारे में ज्यादा जानकारी प्राप्त करनी है, या फिर आपको भी अपहासिया जैसी समस्या है और आप इस समस्या का इलाज चाहते हैं, तो आप आज ही झावर न्यूरो हॉस्पिटल में जाकर अपनी अपॉइंटमेंट को बुक करवा सकते हैं और इसके बारे में डॉक्टर से जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

अपहासिया क्या होता है? डॉक्टर से जानें अपहासिया के लक्षण और इलाज
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  • November 16, 2025

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ब्रेन ट्यूमर की शुरुआत कैसे होती है? इसके प्रकार, लक्षणों और उपचार के बारे में विशेषज्ञ से जानें
Brain TumoursHindi

ब्रेन ट्यूमर की शुरुआत कैसे होती है? इसके प्रकार, लक्षणों और उपचार के बारे में विशेषज्ञ से जानें

हर दिन किसी न किसी व्यक्ति को किसी नई समस्या ने घेरा होता है और इनमें से कई समस्या बहुत ही आम होती हैं और कई बहुत ही ज्यादा गंभीर…

  • November 12, 2025

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ब्रेन ट्यूमर की शुरुआत कैसे होती है? इसके प्रकार, लक्षणों और उपचार के बारे में विशेषज्ञ से जानें

हर दिन किसी न किसी व्यक्ति को किसी नई समस्या ने घेरा होता है और इनमें से कई समस्या बहुत ही आम होती हैं और कई बहुत ही ज्यादा गंभीर होती है, जैसे कि दिमाग में ट्यूमर होना। आपको बता दें, कि यह कोई आम समस्या नहीं होती है। अगर इस समस्या का इलाज समय पर नहीं किया जाता है, तो यह एक व्यक्ति के लिए जानलेवा भी साबित हो सकती है। इस तरह की स्थिति में कई लोगों के मन में यह सवाल उठता है, कि आखिर ब्रेन ट्यूमर की शुरुआत कैसे होती है? तो आइये इस लेख के माध्यम से इसके विशेषज्ञ से इससे जुड़ी हर बात के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं। 

ब्रेन ट्यूमर की शुरुआत कैसे होती है?

दरअसल, ब्रेन ट्यूमर दिमाग की कोशिकाओं में होता है और हैरानी की बात यह है, कि यह कैंसर रहित भी हो सकता है। आपको बता दें कि एक व्यक्ति के दिमाग के एक खास हिस्से में कोशिकायें असामान्य रूप से बढ़ती हैं और वह गांठों का रूप धारण कर लेती हैं, जिसको आम तौर पर, ब्रेन ट्यूमर के नाम से जाना जाता है। यह कई मामलों में एक व्यक्ति के लिए घातक भी हो सकता है। इसलिए ब्रेन ट्यूमर को कभी भी हल्के में नहीं लेना चाहिए। दरअसल, ब्रेन ट्यूमर जैसी गंभीर समस्या किसी को भी हो सकती है। इसलिए इसके बारे में पता चलते ही तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। 

ब्रेन ट्यूमर के प्रकार 

ब्रेन ट्यूमर कई प्रकार के होते हैं, आमतौर पर, जिस में शामिल हैं: 

  1. ग्लियोमा और संबंधित ब्रेन ट्यूमर
  2. कोरॉइड प्लेक्सस ट्यूमर
  3. भ्रूणीय ट्यूमर
  4. जर्म सेल ट्यूमर
  5. पीनियल ट्यूमर
  6. मेनिंगिओमा
  7. तंत्रिका ट्यूमर
  8. पिट्यूटरी ट्यूमर
  9. अन्य ब्रेन ट्यूमर

ब्रेन ट्यूमर के लक्षण 

आपको बता दें, कि ब्रेन ट्यूमर के लक्षण और संकेत आम तौर पर, उसके आकार और स्थान पर निर्भर करते हैं। दरअसल, इस समस्या के लक्षण इस बात पर भी निर्भर करते हैं, कि आखिर ब्रेन ट्यूमर कितनी तेजी से आगे बढ़ रहा है, जिसको ट्यूमर ग्रेड के नाम से भी जाना जाता है। दिमाग में ट्यूमर की वजह से होने वाले सामान्य संकेत और लक्षण निम्नलिखित अनुसार हो सकते हैं, जैसे कि, 

  1. सुबह के समय सिर में दर्द या फिर दबाव का बहुत ज्यादा बढ़ना। 
  2. सिर में दर्द जो बहुत वार होता है और काफी ज्यादा गंभीर प्रतीत होता है। 
  3. मतली या उल्टी होना। 
  4. धुंधला दिखाई देना, दोहरी दृष्टि या फिर दृष्टि के दोनों ओर दृष्टि का खो जाना।
  5. हाथ या फिर पैर में संवेदना या गति का खत्म हो जाना।
  6. संतुलन में परेशानी होना 
  7. कुछ भी बोलने में परेशानी होना। 
  8. हद से ज्यादा थकान महसूस होना। 
  9. याददाश्त की समस्याएं। 
  10. व्यवहार में परिवर्तन होना। 
  11. दौरे पड़ना विशेषकर, अगर दौरे का कोई इतिहास न हो।

ब्रेन ट्यूमर का उपचार 

दरअसल, ब्रेन ट्यूमर के प्रबंधन में अलग-अलग उपचार विधियों में शामिल हैं, जैसे कि 

  1. सर्जरी
  2. रेडिएशन थेरेपी (दिमाग के ट्यूमर के लिए रेडिएशन थेरेपी)
  3. कीमोथेरेपी
  4. लक्षित थेरेपी
  5. अल्टेरनेटिंग इलेक्ट्रिक फील्ड थेरेपी (ट्यूमर उपचार क्षेत्र)

निष्कर्ष:

दिमाग हमारे पूरे शरीर को चलाता है, जैसे कि दिमाग हमें सोचने, कुछ भी करने, बोलने और चीजों को समझने जैसे कई कार्यों में सहायता प्रदान करता है। और आजकल लोग ब्रेन ट्यूमर जैसी समस्या से जूझ रहे हैं, जो एक समय पर हानिकारक साबित हो सकती है। ब्रेन ट्यूमर एक गांठ है, जो दिमाग में कोशिकाओं के असामान्य रूप से बढ़ने पर उत्पन्न होती है। यह कोई आम समस्या नहीं है। अगर वक्त रहते इस समस्या का इलाज न किया जाये, तो यह एक व्यक्ति के लिए जानलेवा भी साबित हो सकती है। इसलिए ब्रेन ट्यूमर को कभी भी हल्के में नहीं लेना चाहिए। इसके लक्षण नज़र आते ही तुरंत डॉक्टर से इलाज प्रपात करना महत्वपूर्ण होता है। लेख में ऊपर इसके प्रकार, लक्षणों और उपचार के बारे में पूर्ण रूप से जानकारी साझा की गई है। अगर आप इसके बारे में ज्यादा जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं, या फिर आप ब्रेन ट्यूमर या फिर दिमाग से जुड़ी किसी गंभीर समस्या से जूझ रहे हैं और आप इसका इलाज करवाना चाहते हैं, तो आप आज ही झावर न्यूरो अस्पताल में जाकर अपनी अपॉइंटमेंट को बुक करवा सकते हैं और इसके बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

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काजू आपके दिमाग के लिए होता है, काफी फायदेमंद, बढ़ाता है दिमाग की शक्ति

काजू सेहत के लिए काफी ज्यादा फायदेमंद होता है। आम तौर पर इसमें कई तरह के पोषक तत्व जैसे कि प्रोटीन, आयरन, स्वस्थ वसा, मैग्नीशियम और जिंक आदि मौजूद होते हैं, जो शरीर को सेहतमंद बनाने में काफी ज्यादा मदद करते हैं। दरअसल, रोजाना काजू का सेवन करने से हड्डियां काफी ज्यादा मजबूत होती हैं, दिल से जुड़ी समस्याओं को कम करने में मदद करता है, और आप इस से पूरे दिन ऊर्जावान महसूस करते हैं। पर क्या आप इस बात को जानते हैं, कि काजू आपके दिमाग के स्वस्थ के लिए भी फायदेमंद होता है। यह आम तौर पर यादाश्त और एकाग्रता को बढ़ाने में मदद करता है, क्योंकि इस में फॉस्फेटिडिलसेरिन पाया जाता है। इस से आपका तनाव भी काफी ज्यादा कम रहता है। इसके साथ ही काजू में मोनोअनसैचुरेटेड और पॉलीअनसेचुरेटेड जैसे फैटी एसिड भी पाए जाते हैं, जो आपके दिमाग की सेहत को बना कर रखने और साथ में दिमाग की सूजन को कम करने में काफी ज्यादा मदद प्रदान करते हैं। आपको बता दें, कि आप काजू का सेवन कई तरीकों से कर सकते हैं, जो आपके लिए काफी ज्यादा फायदेमंद साबित हो सकते हैं। 

दिमाग की शक्ति के लिए कैसे फायदेमंद होता है, काजू 

  1. कॉपर तनाव कम करता है

दरअसल, काजू में कॉपर नाम का एक मिनरल पाया जाता है, जो आम तौर पर व्यक्ति के तनाव को कम करने में काफी ज्यादा मदद करता है. इसके साथ ही यह एक वयक्ति के शरीर में काफी अच्छी मात्रा में हार्मोन और एंजाइम पैदा करने के लिए दिमाग को बढ़ावा देता है। 

  1. काजू याददाश्त को बेहतर बनाता है 

दरअसल, आप काजू का सेवन, अपनी दिमागी शक्ति को बढ़ाने और उस को मजबूत रखने के लिए कर सकते हैं। रोजाना काजू का सेवन करने से आप अपने काम को बिना तनाव के कर पाते हैं और साथ में, यह शरीर में ब्लड सर्कुलेशन को काफी अच्छा करता है, जिसकी सहायता से हमारे दिमाग में ऑक्सीजन की मात्रा अच्छे तरीके से पहुंच पाती है। 

  1. इम्यून सिस्टम को बेहतर करता है 

दरअसल, काजू में प्रोटीन और आयरन भरपूर मात्रा में पाया जाता है, जो हमारी सेहत के लिए काफी ज्यादा लाभदायक होता है। आम तौर पर काजू के सेवन से हमारा इम्यून सिस्टम भी मजबूत होता है, जिससे कई तरह की बीमारियों से दूर रहा जा सकता है और साथ में इससे हमारा शरीर रोग मुक्त रहता है। 

  1. पॉली-सैचुरेटेड और मोनो-सैचुरेटेड फैट से भरपूर 

दिमाग की कोशिकाओं की प्रगति के लिए दरअसल, पॉली-सैचुरेटेड और मोनो-सैचुरेटेड फैट्स काफी ज्यादा फायदेमंद होते हैं, जो काजू में उच्च मात्रा में पाए जाते हैं। नियमित काजू का सेवन करने से तनाव कम होता है और साथ में इससे एकाग्रता बेहतर बनती है। 

निष्कर्ष: काजू हमारी सेहत के साथ-साथ दिमाग के लिए भी काफी ज्यादा फायदेमंद होता है, यह दिमागी शक्ति को बढ़ाने में मदद करता है। रोजाना काजू का सेवन करने से तनाव कम होता है, याददाश्त बढ़ती है और इम्यून सिस्टम बेहतर बनता है, क्योंकि यह प्रोटीन, आयरन, स्वस्थ वसा, मैग्नीशियम और जिंक जैसे कई तरह के पोषक तत्वों से भरपूर होता है, जो दिमाग की कोशिकाओं के विकास के लिए महत्वपूर्ण होता है। इसके बारे में ज्यादा जानकारी प्राप्त करने के लिए आप डॉक्टर से संपर्क कर सकते हैं। अगर आपको भी दिमाग से जुड़ी किसी भी तरह की समस्या है और आप इसका इलाज या इसके बारे में जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं, तो आप आज ही झावर न्यूरो हॉस्पिटल में जाकर अपनी अपॉइंटमेंट को बुक करवा सकते हैं और इसके न्यूरोलॉजिस्ट से इसके बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

अपहासिया क्या होता है? डॉक्टर से जानें अपहासिया के लक्षण और इलाज
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आखिर क्या है डूम स्क्रोलिंग, जो मेंटल हेल्थ को प्रभावित कर रही है? डॉक्टर से जाने।

आप जब सुबह के समय उठते हैं, तो सबसे पहले क्या करते हैं, अपना फ़ोन उठाते हैं और उसमें कुछ न कुछ स्क्रॉल करने लग जाते हैं, ऐसा आप ही नहीं, बल्कि कई लोग ऐसा करते हैं। सोशल मीडिया का जमाना है। जिधर नजर डालो उधर हर व्यक्ति अपने फोन के स्क्रीन को स्क्रॉल ही करता रहता है। सोशल मीडिया स्क्रोलिंग करने के दौरान आपकी नजर में कुछ अच्छी खबरें भी आती है, तो कुछ निगेटिव खबर भी देखने को मिलती है। तो आप इन ख़बरों में ही फंस जाते हैं और उसी में अटके रहते हैं। वहीं जो लोग बहुत ज्यादा ऑनलाइन नेगेटिव समाचारों को देखने में अपना समय बिताते हैं, उसको डूम स्क्रोलिंग के नाम से जाना जाता है। आमतौर पर आपका मोबाइल की स्क्रीन पर स्क्रॉल करते रहना ज्यादातर आपकी मेंटल हेल्थ को प्रभावित कर रहा है। दरअसल यह शब्द डूम और स्क्रोलिंग से मिलकर बना है, जिसमें डूम का मतलब है विनाश और स्क्रोलिंग का मतलब है मोबाइल की स्क्रीन पर स्क्रॉल करते रहना। आइये इस लेख के माध्यम से इसके एक्सपर्ट से जानते हैं, कि डूम स्क्रॉलिंग क्या है, यह कैसे आपकी मेंटल हेल्थ पर खराब असर डाल रहा है और इससे आप लोग कैसे बच सकते हैं ? 

डूम स्क्रॉलिंग क्या है?

दरअसल डूम स्क्रॉलिंग वास्तव में नया नहीं है, पर यह शब्द नया है। बता दें कि डूमस्क्रॉलिंग’ शब्द आमतौर पर दो शब्दों ‘डूम’ और ‘स्क्रॉलिंग से मिलकर बना है। डूम और स्क्रॉल का मतलब हम आपको पहले ही बता चुके हैं। दरअसल यह एक नियमित रूप से और लंबे समय तक सोशल मीडिया पर स्क्रॉल करते हुए बुरी खबरें और नकारात्मक पोस्ट को पढ़ने की आदत होती है। आमतौर पर महामारी ने डूमस्क्रॉलिंग को सबसे आगे ला दिया है और ज्यादातर लोगों को इस  विनाशकारी गतिविधि में शामिल कर लिया है। इसकी शुरुआत खबरों से अपडेट रहने के तरीके के रूप में शुरू हो सकती है, पर डूमस्क्रॉलिंग बहुत जल्द एक बुरी आदत में बदल सकती है, और कुछ लोगों के लिए तो यह जुनून या फिर कुछ लोगों के लिए मजबूरी भी बन सकती है। इसमें आप एक खबर से दूसरी खबर, एक पोस्ट से दूसरी पोस्ट पर स्क्रॉल करते रहते हैं, पर ऐसा लोग क्यों करते हैं?

हम डूम स्क्रॉलिंग क्यों करते हैं?

आमतौर पर महामारी ने डूमस्क्रॉलिंग को बढ़ावा दिया और इस गतिविधि को यह नाम दिया। दरअसल डूमस्क्रॉलिंग शब्द कोरोना के वक्त ज्यादा चर्चा में आया था, पर कोरोना वायरस महामारी के कारण और भी लोगों ने इस आदत को अपना लिया और आज भी ज्यादातर व्यक्ति इस आदत को हावी होते हुए देख रहे हैं। सभी जानते हैं, कि कोरोना के समय में हर व्यक्ति नेगेटिव खबरों से घिरा रहता था और उस को हर एक अपडेट लेनी होती थी। इसी तरह आज के समय में कई लोग क्राइम की ख़बरों को देखते हैं और उनको यह बार-बार देखना अच्छा लगता है, क्योंकि इंसान का दिमाग पहले से ही किसी खतरे को पहचानने की कोशिश करता है। दरअसल जब कोई व्यक्ति किसी नेगेटिव खबर को लगातार देखता रहता है, तो उसको लगता है, कि वह उस खबर को लगातार देखकर खुद को आगे के लिए सावधान कर रहा है, या फिर इसके बारे में ज्यादा जानकारी प्राप्त कर रहा है। जबकि ऐसा बिलुक भी नहीं होता है, दरअसल इन सब चीजों से तनाव, डर और बेचैनी बढ़ती है और यह व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य पर असर डालती है।

डूम स्क्रॉलिंग का मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव

दरअसल जब आप लगातार नेगेटिव ख़बरें या फिर अपने आप को परेशान कर देने वाली ख़बरों को पड़ते हैं, तो इसका सीधा प्रभाव आपके दिमाग और आपके शरीर पर पड़ता है। ऐसा करने पर आपके दिमाग का एक हिस्सा एमिग्डाला एक्टिव हो जाता है, जिसका संबंध भावनाओं और खासतौर पर डर और चिंता से होता है। इस स्थिति में व्यक्ति के तनाव वाला हार्मोन कॉर्टिसोल एक्टिव हो जाता है, जिससे आपका मूड, नींद और ध्यान सब कुछ खराब हो जाता है। आमतौर पर डूमस्क्रॉलिंग आपके डोपामिन सिस्टम को भी एक्टिव कर देता है, जिसमें आप नेगेटिव और टेंशन से भरी ख़बरों को बार बार देखना पसंद करते हैं। जब आपको इसकी आदत लग जाती है, तो आप बहुत ही ज्यादा चिड़चिड़े होने लग जाते हैं और आप किसी एक विचार पर टिक नहीं पाते हैं। इसके अलावा कभी कभी आपको बहुत ज्यादा डर लगता है और बेचैनी होती है। इस तरह की स्थिति में इसके कई मरीज बताते हैं की देर रात तक स्क्रॉल करने से उन्हें फ्यूचर की चिंता बढ़ जाती है और नींद भी नहीं आती है।  

  1. यह नकारात्मक विचारों और भावनाओं को और मजबूत करता है। 
  2. व्यक्ति की मानसिक बीमारी को और बिगाड़ देता है। 
  3. डूमस्क्रॉलिंग से घबराहट और चिंता में बढ़ोतरी होती है। 
  4. व्यक्ति की नींद में कमी हो जाती है। 
  5. विरोधाभासी पोस्ट मन में बेचैनी पैदा करती हैं। 
  6. डूम स्क्रॉलिंग के दौरान और बाद में आंखों में दर्द होता है। 
  7. ज्यादातर व्यक्ति में चिड़चिड़ापन आ जाता है। 
  8. ध्यान में कमी को पैदा करता है। 
  9. डूम स्क्रॉलिंग से व्यक्ति को सिरदर्द और थकान होने लगती है। 
  10. यह सामाजिकता में कमी पैदा करता है। 
  11. सोशल मीडिया और डूमस्क्रॉलिंग तनाव वाले हार्मोन को ट्रिगर करते हैं।

क्या इससे महिलाएं ज्यादा प्रभावित होती हैं?

हाँ यह माना जाता है, की डूमस्क्रॉलिंग से ज्यादातर महिलाएं प्रभावित होती हैं। बता दें कि हमारे दिमाग के लिम्बिक सिस्टम से इस आदत का संबंध होता है। आमतौर पर यह हम को खतरों से सावधान रहने की चेतावनी देता है। अगर आप लगातार नेगेटिव ख़बरों को देखने में अपना समय बिताते हैं, तो आपका दिमाग ऐसी खबरों को देखने और इनको पढ़ने के लिए मजबूर करता रहेगा। 

डूमस्क्रॉलिंग आदत से कैसे छुटकारा पाएं

दरअसल डूम स्क्रॉलिंग एक ऐसी आदत है, जिस पर सभी को ध्यान देने की जरूरत है। इसके साथ ही इस बात को समझना बहुत जरूरी है, कि आप यह स्क्रॉल सुबह या रात के समय में तो बिल्कुल भी न करें।

  1. समय सीमा तय करें।

आमतौर पर आप ख़बरों को देखने के लिए एक समय निर्धारित करें, इसके साथ ही आप सुबह उठते ही फोन को स्क्रॉल न करें और हां रात को सोने से पहले भी फोन को न चलाएं।

  1. अपनी फीड को ठीक करें।

दरअसल यह बहुत ज्यादा मायने रखता है, की आपके फोन पर फीड किस तरीके का आ रहा है  क्योंकि इस बात पर भी आपका मानसिक संतुलन निर्भर करता है। आप अपने फ़ोन की फीड में नेगेटिव ख़बरों को बिलकुल भी न आने दें। उन सभी अकाउंट्स और पेज को अनफॉलो कर दें, जो आपको नेगेटिव ख़बरों की तरह लेकर जाते हैं और इनको बार बार न देखें।

  1. माइंडफुलनेस अपनाएं।

इस तरह की स्थिति में एक गहरी सांस लें, मेडिटेशन करें और वॉक करें। इन सब चीजों को अपनी डेली रूटीन में अपनाएं, और यह सब करने से आपकी स्क्रॉल करने की आदत धीरे-धीरे कम हो जाएगी। 

  1. दूसरी आदतें अपनाएं।

इस दौरान आप दूसरी आदतों को अपना सकते हैं, जैसे जब भी आपका फोन स्क्रॉल करने का मन करे, या फिर इस तरीके का कुछ भी देखने को मन करे, तो उसी दौरान आप उस जगह कुछ और करने लग जाए, जैसे किताब पढ़ना, अपना पसंदीदा काम करना, म्यूजिक सुनना आदि।

  1. जानकारी रखें, लेकिन ज्यादा नहीं।

हर चीज की जानकारी को रखना सही होता है, जानकारी रखें, पर  ज्यादा नहीं। इस दौरान जब भी आपको ख़बरों को पढ़नी हो या फिर जानकारी लेनी हो, तो एक या दो भरोसेमंद वेबसाइट से ही ख़बरों को देखें या पढ़ें, पर इस दौरान आप और वेबसाइट्स पर जाने से बचें और युहीं बेवजह अपने आप को परेशान न करें।

निष्कर्ष

सुबह उठते समें लगभग सभी लोग पहले आपाने फ़ोन को चेक करते हैं और उसमें कुछ न कुछ स्क्रॉल करने लग जाते हैं। लोगों द्वारा बहुत ज्यादा नेगेटिव समाचारों को देखना और अपना सारा वक्त उसी में बतीत करना डूम स्क्रोलिंग कहलाता है। आज के समय में डूमस्क्रॉलिंग एक गंभीर मानसिक स्वास्थ्य समस्या बनती जा रही है। इसलिए आपके लिए जरूरी है की आप जागरूक रहें। ख़बरों को पढ़ें, पर सिर्फ जानकारी के लिए, इसकी गहराई तक जाने की कोशिश बिलकुल भी न करें। अगर आप स्क्रीन पर अपना ज्यादा समय बतीत करते हैं, तो आप चिड़चिड़ापन, तनाव और डर जैसी समस्याओं से जूझ सकते हैं। अगर डूमस्क्रॉलिंग करने से अपना मन खराब होता है या फिर गुस्सा आता है, तो आपको किसी एक्सपर्ट की सलाह लेनी चाहिए, और अपने फ़ोन से कुछ वक्त के लिए दुरी बना कर रखनी चाहिए। अगर आपको भी डूमस्क्रॉलिंग से किसी भी प्रकार की समस्या हो रही है और आप इसका इलाज करवाना चाहते हैं तो आज ही झावर न्यूरो हॉस्पिटल में जाकर अपनी अपॉइंटमेंट को बुक करवा सकते हैं और इसके विशेषज्ञों से अपनी समस्या का समाधान प्राप्त कर सकते हैं। 

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

प्रश्न 1. मानसिक स्वास्थ्य के लिए क्या डूम स्क्रॉलिंग खराब है?

हां, डूम स्क्रॉलिंग हमारे स्वास्थ्य के लिए खराब है। इसे करने से मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता है। आमतौर पर यह हमको चिंता, तनाव और डर की ओर ले जाता है। 

प्रश्न 2. मेंटल हेल्थ कैसे ठीक करें?

अपनी मेंटल हेल्थ को ठीक करने के लिए आपको सही रूटीन को अपनाना चाहिए, जैसे सही आहार लें, हाइड्रेटेड रहें और व्यायाम करें। इसके साथ ही अपने पसंदीदा काम करें और अपने आप को खुश रखने की कोशिश करें।

अपहासिया क्या होता है? डॉक्टर से जानें अपहासिया के लक्षण और इलाज
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अपहासिया क्या होता है? डॉक्टर से जानें अपहासिया के लक्षण और इलाज

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अल्जाइमर रोग आपकी नींद को किस तरह से प्रभावित करता है, डॉक्टर से जानिए

ऐसी कई बीमारियां हैं, जो आपके दिमाग के कामों को प्रभावित करती हैं। आपको बता दें कि अल्जाइमर रोग को भी इस श्रेणी में शामिल किया जाता है। आमतौर पर बहुत ज्यादा उम्र के लोगों में अल्जाइमर जैसी बीमारी के लक्षण देखने को मिलते हैं। पर आमतौर पर युवा लोगों में भी इस समस्या को देखा जा सकता है। आपको बता दें कि यह एक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है, जो कि धीरे-धीरे व्यक्ति के दिमाग के कामकाज को कमजोर कर देता है। दरअसल इस में धीरे-धीरे एक व्यक्ति की याददाश्त, सोच और साथ ही व्यवहार प्रभावित होता है। पर बहुत से लोग इसके बारे में नहीं जानते हैं, कि अल्जाइमर की समस्या नींद की गुणवत्ता और पैटर्न पर भी अपना गहरा प्रभाव डालती है। 

माना जाता है, कि अल्जाइमर से पीड़ित लोगों को अक्सर नींद न आने की समस्या होती है या फिर इसकी वजह से उनकी सोने और जागने की दिनचर्या में बदलाव देखने को मिलता है। आमतौर पर इस बीमारी वाले लोगों में ज्यादातर नींद की समस्या से जुड़े लक्षण देखने को मिलते हैं। तो आइये इस लेख के माध्यम से इसके डॉक्टर से इसके बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त करते हैं कि अल्जाइमर रोग एक व्यक्ति की नींद को कैसे प्रभावित करता है, इसके कारण, लक्षण और इससे निपटने के उपाय क्या हैं।

अल्जाइमर रोग और नींद के बीच में क्या कनेक्शन है?

बता दें कि अल्जाइमर रोग और नींद के बीच में एक गहरा संबंध होता है। आमतौर पर दिमाग आपके सोने और जागने के चक्र को नियंत्रित करता है और अल्जाइमर रोग आपके दिमाग की कार्यप्रणाली को खराब कर देता है। जिसकी वजह से यह साइकिल असंतुलित हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप मरीजों को अक्सर नींद आने में परेशानी होती है, रात के समय में बार-बार आँख खुलना, सुबह बहुत जल्दी उठ जाना या फिर दिन में बहुत ज्यादा सोना और इसके साथ ही रात को भ्रमित हो जाना जैसी समस्याएं होने लगती हैं। आपको बता दें कि नींद की कमी के कारण व्यक्ति की याददाश्त और सोचने की क्षमता और भी ज्यादा कमजोर हो सकती है, जिसकी वजह से अल्जाइमर की समस्या के लक्षण तेजी से बढ़ सकते हैं।

अल्जाइमर रोग में नींद से जुड़ी प्रमुख समस्याएं

  1. अनिद्रा

आमतौर पर इस समस्या से पीड़ित व्यक्ति को रात में बिलकुल नींद नहीं अति है या फिर बहुत देर बाद नींद आती है। इस समस्या से पीड़त मरीज कभी-कभी पूरी रात जागते रहते हैं।

  1. बार-बार नींद से जागना 

इस समस्या से पीड़ित व्यक्ति की नींद में बार-बार रुकावट आती है। बता दें की इस दौरान व्यक्ति बार-बार उठकर इधर उधर चलने लगता है, जिसकी वजह से उसको बहुत ज्यादा थकान और चिड़चिड़ापन बढ़ जाता है।

  1. दिन में अधिक नींद आना 

दरअसल इस समस्या दौरान व्यक्ति की रात की नींद खराब होने की वजह से, उसको दिन में नींद आना शुरू हो जाता है। आमतौर पर जिसकी वजह से व्यक्ति की नींद का चक्र और भी ज्यादा बिगड़ता है।

  1. संडाउनिंग सिंड्रोम 

आपको बता दें कि यह एक इस तरह की स्थिति है, जिसमें अल्जाइमर से पीड़ित व्यक्ति ज्यादातर शाम के समय में बहुत ज्यादा बेचैन, भ्रमित और आक्रामक हो जाता है। आमतौर पर ये लक्षण शाम के वक्त और ज्यादा तेज़ हो जाते हैं और इसके साथ ही व्यक्ति की नींद को और ज्यादा प्रभावित करते हैं।

  1. नींद से जुड़ी अन्य बीमारियां

आमतौर पर इस समस्या के दौरान नींद से जुड़ी अन्य बीमारियां जैसे कि, स्लीप एपनिया, रेस्टलेस लेग सिंड्रोम जो कि अल्जाइमर की समस्या से पीड़ित रोगियों में ज्यादा देखी जाती हैं।

अल्जाइमर रोग में नींद बिगड़ने के मुख्य कारण

  1. दिमाग की बनावट में बदलाव

अल्जाइमर में दिमाग के वो हिस्से जो आमतौर पर नींद को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका को निभाते हैं, जैसे कि हाइपोथैलेमस प्रभावित हो जाते हैं।

  1. मेलाटोनिन हार्मोन में गिरावट

मेलाटोनिन दरअसल एक नींद लाने वाला हार्मोन है और आपको बता दें की अल्जाइमर की समस्या से पीड़ित रोगियों में इसकी मात्रा बहुत ज्यादा कम हो जाती है। जिसकी वजह से एक व्यक्ति को नींद आने में बहुत ज्यादा परेशानी होती है। 

  1. याददाश्त की कमी

इस समस्या से पीड़ित रोगी को समय, स्थान और व्यक्ति की पहचान करने में बहुत ज्यादा दिक्कत होती है, जिसकी वजह से रोगी को रात के समय में चिंता और घबराहट काफी ज्यादा बढ़ जाती है और नींद में रुकावट आने लगती है।

  1. दवाइयों का असर

आपको बता दें कि कुछ मानसिक या फिर शारीरिक रोगों की दवाएं भी नींद पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती हैं, जिसकी वजह से नींद प्रभावित हो सकती है।

अल्जाइमर रोग के लक्षण

  1. व्यक्ति की याददाश्त कम हो जाना। 
  2. बातों को बहुत जल्दी भूलने लगना। 
  3. सही शब्द का याद न आना। 
  4. रोजमर्रा के कामों को करने में कठिनाई होना। 
  5. समय और जगह की पहचान करने में भ्रम होना। 
  6. फैसला लेने में परेशानी होना। 
  7. चीज़ों को गलत जगह पर रख देना और भूल जाना। 
  8. स्वभाव और मूड में बदलाव होना। 
  9. सामाजिक गतिविधियों में दिलचस्पी बहुत कम होना। 
  10. इस दौरान व्यक्ति का बार-बार एक ही सवाल पूछना। 

अल्जाइमर की समस्या से पीड़ित व्यक्ति की नींद सुधारने के उपाय

  1. अल्जाइमर की समस्या से पीड़ित व्यक्ति को अपनी नींद सुधरने के लिए हर दिन एक ही समय पर सोना और उठना बहुत जरूरी है। 
  2. इस दौरान आपको सोने से पहले शांत और आरामदायक गतिविधियों को करना चाहिए। 
  3. इस समस्या के समय बेडरूम में कम रोशनी रखें, ताकि आपको अच्छी नींद आये। 
  4. अपनी नींद में सुधार करने के लिए आपको तेज आवाज और टीवी से दूरी बना कर रखना बहुत जरूरी है। 
  5. इस समस्या से बचने के लिए कैफीन और शुगर युक्त चीजों से अपना बचाव करें। 
  6. आमतौर पर इस दौरान इस समस्या से पीड़ित व्यक्ति सोने से पहले किसी भी तरह की हैवी एक्सरसाइज जैसे भारी एक्सरसाइज को बिलकुल भी न करें। 
  7. इस दौरान नींद में सुधार करने के लिए आप हल्का गर्म दूध या फिर कैमोमाइल टी का सेवन कर सकते हैं। 

निष्कर्ष

हमारे सम्पूर्ण स्वास्थ्य के लिए और एक अच्छा, तनाव रहित जीवन जीने के लिए नींद काफी ज्यादा महत्वपूर्ण होती हैं। पर कई बार कुछ रोगों जैसे कि अल्जाइमर जैसी समस्याओं के कारण यह बुरे तरीके से प्रभावित हो सकती है। अल्जाइमर एक तरह का डिसऑर्डर है, जो पीड़ित रोगी की केवल याददाश्त को ही नहीं, बल्कि नींद, व्यवहार, सोच और दिमाग के कामों को भी बुरी तरह प्रभावित करता है। अल्जाइमर रोग और नींद के बीच एक गहरा संबंध है, जो दिमाग के उन हिस्सों को प्रभावित करता है, जो नींद और जागने के समय को नियंत्रित करते हैं। इस से पीड़ित मरीज को अनिद्रा, बार-बार नींद से जागना, दिन में अधिक नींद आना, और संडाउनिंग सिंड्रोम होना जैसी समस्यायों का सामना करना पड़ता है। अल्जाइमर रोग में नींद बिगड़ने के मुख्य कारण, दिमाग की बनावट में बदलाव होना और मेलाटोनिन हार्मोन में गिरावट होना आदि होते हैं। हर दिन एक ही समय पर सोना और उठना, सोने से पहले भारी एक्सरसाइज करने से बचना और कैफीन और शुगर युक्त चीजों से दूर रहना आदि जैसे उपायों अपनाकर अल्जाइमर से प्रभावित व्यक्ति अपनी नींद में सुधार कर सकता है। समय पर नींद से जुड़ी समस्याओं की पहचान करके और सही प्रबंधन से मरीज के जीवन की गुणवत्ता को अच्छा बनाया जा सकता है। अगर आपको भी अल्जाइमर जैसी कोई समस्या है, जो आपकी नींद में बाधा डालती है और आप इस से काफी ज्यादा परेशान हैं और इसका समाधान चाहते हैं, तो आप आज ही झावर न्यूरो अस्पताल में जाकर आपकी अपॉइंटमेंट को बुक करवा सकते हैं और इसके विशेषज्ञों से इसके बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। 

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

प्रश्न 1. अल्जाइमर की समस्या क्यों होती है?

दरअसल इसके सटीक कारण अभी तक किसी को पूरी तरीके से समझ में नहीं आए हैं, पर ऐसा माना जाता है कि यह समस्या आनुवंशिक, जीवन शैली और पर्यावरणीय कारकों की वजह से होती है। 

प्रश्न 2. नींद से जुड़ी परेशानी क्यों होती है?

आम तौर पर एक व्यक्ति को नींद से जुड़ी समस्याएं कई कारणों से हो सकती हैं, जिसमें खराब नींद की आदतें, मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं, मेडिकल कंडीशन, और तनाव आदि शामिल हैं। 

प्रश्न 3. रात को नींद नहीं आने पर क्या करना चाहिए?

आपको बता दें कि रात को नींद ना आने पर आपको रोजाना मेडिटेशन, योग, एक्सरसाइज और संतुलित सुपाच्य भोजन का सेवन करना चाहिए।

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बच्चों में ब्रेन ट्यूमर के 8 चेतावनी संकेत और इसके संभावित कारणों के बारे में डॉक्टर से जानें!

आजकल दिमागी समस्याएं बहुत ज्यादा उत्पन्न हो रही हैं, जैसे ब्रेन ट्यूमर जो आज के समय में बच्चों में भी देखा जा रहा है। हालांकि ब्रेन ट्यूमर एक गंभीर स्थिति है, जिसका समय पर इलाज करवाना बहुत जरूरी होता है। आपको बता दें कि ब्रेन ट्यूमर दिमाग में असामान्य कोशिकाओं की वृद्धि है। दरअसल दिगमग की शारीरिक रचना बहुत ज़्यादा जटिल होती है, जिसके अलग- अलग भाग दिमागी प्रणाली के विभिन्न कार्यों के लिए ज़िम्मेदार होते हैं। आपको बता दें की ब्रेन ट्यूमर दिमाग में या फिर खोपड़ी के किसी भी हिस्से में विकसित हो सकता है, जिस में उसकी सुरक्षात्मक परत, दिमाग का निचला भाग, ब्रेनस्टेम, साइनस और नासिका गुहा, और कई अन्य क्षेत्र आदि शामिल हैं। ये हैरान कर देने वाला हो सकता है कि हमारे दिमाग में 120 से ज़्यादा विभिन्न प्रकार के ट्यूमर विकसित हो सकते हैं, जो इस बात पर निर्भर करता है कि वह दिमाग की किस नस में पैदा हो रहा है। 

इसके साथ ही जब बात हमारे बच्चों के स्वास्थ्य की आती है, तो सतर्कता बहुत जरूरी होती है और उसका शीघ्र निदान करना भी बहुत ज़रूरी है। हालांकि ब्रेन ट्यूमर, अपेक्षाकृत दुर्लभ है, और यह बच्चों को प्रभावित करने वाली सबसे गंभीर बीमारियों में से एक है। ब्रेन ट्यूमर के लक्षणों का जल्द पता लगाने और समय पर चिकित्सा सहायता लेने से परिणामों में काफी सुधार हो सकता है। इस लेख के माध्यम से कुछ सबसे आम संकेत और लक्षण बता रहे हैं जो संभावित ब्रेन ट्यूमर की ओर इशारा कर सकते हैं। 

बच्चों में ब्रेन ट्यूमर के 8 चेतावनी संकेत क्या हैं?

1. लगातार सिरदर्द:

अक्सर बच्चे सिरदर्द की शिकायत करते हैं। ब्रेन ट्यूमर से पीड़ित कई बच्चों को निदान से पहले ही सिरदर्द का अनुभव होने लगता है। आपको बता दें कि कई बच्चों को सिरदर्द होता है, पर उनमें से ज्यादातर बच्चों को ब्रेन ट्यूमर नहीं होता है। बच्चों का लगातार सिरदर्द जो ठीक नहीं होता, खासकर सुबह के समय ज़्यादा तेज़ या रात में बच्चे को जगा देने वाला सिरदर्द एक चेतावनी भरा संकेत हो सकता है। ऐसा आंशिक रूप से इसलिए होता है, क्योंकि बच्चे के लेटने पर मस्तिष्क में दबाव बढ़ जाता है, और ट्यूमर इस को और भी ज्यादा बदतर बना सकता है। जिससे लगातार सिरदर्द हो सकता है और जिस पर सामान्य दर्द निवारक दवाओं का भी असर नहीं हो सकता है। 

2. मतली और उल्टी:

आमतौर पर मतली और उल्टी फ्लू या फ्लू जैसी बीमारियों के दो सामान्य लक्षण हैं। अगर यह खासकर सुबह के समय होती हैं और किसी अन्य सामान्य बीमारी से संबंधित नहीं होती है, तो यह ब्रेन ट्यूमर के कारण बढ़े हुए इंट्राक्रैनील दबाव का संकेत हो सकती हैं। अगर यह लक्षण आपके बच्चे में बने रहें, और बार -बार बिना किसी स्पष्ट कारण के दिखाई देते हैं, या सिरदर्द के साथ मेल खाते हों, तो आपको बच्चे के किसी स्वास्थ्य सेवा प्रदाता से परामर्श लेना बहुत जरूरी है।

3. नींद आना:

आमतौर पर बच्चे का ज्यादातर नींद में होना चिंता का विषय नहीं होता। पर अपनी सहज प्रवृत्ति पर ध्यान दें। आपको बता दें कि अगर आपका बच्चा बिना किसी स्पष्ट कारण के सुस्त या फिर बहुत ही ज्यादा नींद में रहने लगे, तो आपको अपने डॉक्टर से इसके बारे में सलाह लेनी चाहिए, कि इसके लिए आगे की जांच जरूरी है। 

4. दृष्टि, सुनने या वाणी में परिवर्तन:

आमतौर पर ब्रेन ट्यूमर के स्थान के आधार पर, यह दृष्टि, सुनने और वाणी को प्रभावित कर सकता है। बेशक, जिन बच्चों का ब्रेन ट्यूमर से कोई लेना-देना नहीं होता है, उन बच्चों को भी इन क्षेत्रों में ऐसी समस्याएं होती हैं। फिर भी, आपके बच्चे को देखने, सुनने या बोलने के तरीके में अचानक आए बदलावों का मूल्यांकन किसी चिकित्सक के द्वारा ही किया जाना चाहिए। 

5. व्यक्तित्व में परिवर्तन:

आपको बता दें कि व्यक्तित्व में बदलाव पालन-पोषण का ही एक बिल्कुल सामान्य हिस्सा हो सकता है। बहुत ही कम मामलों में, यह परिवर्तन दिमाग के ट्यूमर की वजह से हो सकता है, जो सेरेब्रल कॉर्टेक्स को प्रभावित करता है। दरअसल अगर आपको अपने बच्चे के मूड में बदलाव या फिर व्यक्तित्व में बदलाव अचानक या फिर मामला गंभीर लगे, तो आपको अपने बच्चे के बाल रोग विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए। 

6. संतुलन और तालमेल संबंधी समस्याएं:

चलने में कठिनाई, भद्दापन और तालमेल की कमी, दिमागी ट्यूमर के लक्षण हो सकते हैं जो सेरिबैलम को प्रभावित करता है। आपको बता दें कि अगर ट्यूमर ब्रेन स्टेम के पास हो, तो इस से संतुलन की समस्या हो सकती है। बच्चों के लिए ज़्यादातर गिरना आम बात है। पर आपके छोटे बच्चे में संतुलन की गंभीरता या बिगड़ती समस्या के लिए डॉक्टर से संपर्क करना बेहद जरूरी है। अगर आपके बड़े बच्चे को अचानक संतुलन बनाए रखने में दिक्कत हो रही है, या आपका बच्चा असामान्य रूप से अस्थिर लगता है, और उस को काम करने में परेशानी हो रही है, जिनमें सूक्ष्म मोटर कौशल की आवश्यकता होती है, तो आपको चिकित्सीय सलाह लेना बहुत जरूरी होता है।

7. दौरे :

दरअसल दौरे पड़ना, बच्चों में ब्रेन ट्यूमर के सबसे खतरनाक लक्षणों में से एक है। आपको बता दें कि जब ब्रेन ट्यूमर मस्तिष्क की सतह पर होता है, तो यह दौरे पढ़ने का कारण बन सकता है। आमतौर पर ऐसी कई गतिविधियां हैं, जो दौरे को ट्रिगर कर सकती हैं, जिसमें हंसना भी शामिल है। इसके साथ ही दौरे के दौरान अनियंत्रित झटके, बेहोशी या असामान्य संवेदी अनुभव किये जा सकते हैं। अगर आपके बच्चे को दौरा पड़ता है, या बच्चे को दौरे पड़ रहे हैं, तो तुरंत आपको डॉक्टर से मिलना चाहिए। इस समस्या का कारण ट्यूमर या किसी और तंत्रिका संबंधी समस्या का संकेत हो सकता है। पर दौरे का हमेशा मूल्यांकन किया जाना चाहिए।

8. सिर का आकार बढ़ना:

दरअसल जब शिशु छोटे होते हैं, तो उनकी खोपड़ी की हड्डियां अभी तक जुड़ी या फिर एक साथ बढ़ी नहीं होती है। हालाँकि उनकी हड्डियां अभी भी लचीली होती हैं, इसलिए ब्रेन ट्यूमर आमतौर पर उनके सिर को असामान्य रूप से बढ़ने का कारण बन सकता है। अगर आप अपने शिशु की खोपड़ी में या इसके आकर में एक तरफ उभार या कोई और गंभीर बदलाव को देखते हैं, तो आपको तुरंत अपने डॉक्टर से सलाह करनी चाहिए। आपका डॉक्टर यह तय करने में आपकी मदद कर सकता है कि क्या आगे की जांच करनी जरूरी है।

बच्चों में ब्रेन ट्यूमर के संभावित कारण

  1. आनुवंशिक परिवर्तन 

दरअसल डीएनए में असामान्य परिवर्तन या परिवर्तन अनियंत्रित कोशिका विभाजन की वजह बन सकता है, जिसके परिणामस्वरूप ट्यूमर पैदा होता है। आमतौर पर यह आनुवंशिक परिवर्तन अनियमित रूप से हो सकता है, या फिर परिवार के किसी सदस्य से विरासत में मिल सकता है, जैसा कि ली-फ्रामेनी सिंड्रोम या टर्कोट सिंड्रोम जैसे सिंड्रोम में देखा जाता है।

  1. विकिरण जोखिम

आपको बता दें कि कैंसर के इलाज या पर्यावरणीय स्रोतों से निकलने वाले आयनकारी विकिरण की उच्च खुराक के संपर्क में आने पर ब्रेन ट्यूमर का खतरा बढ़ सकता है। दरअसल पर्याप्त सुरक्षा के बिना एक्स-रे जैसे विकिरण उत्सर्जित करने वाले उपकरणों का लंबे समय तक इस्तेमाल भी कोशिकाओं को नुकसान पहुंचा सकता है।

  1. पारिवारिक इतिहास

हालांकि यह बहुत ही कम होता है, पर ब्रेन ट्यूमर या विशिष्ट आनुवंशिक स्थितियों का पारिवारिक इतिहास व्यक्तियों में ट्यूमर के विकास के लिए पूर्व-प्रवृत्त हो सकता है। आपकी जानकारी के लिए आपको बता दें कि लगभग 5 से 10% ब्रेन ट्यूमर आमतौर पर वंशानुगत आनुवंशिक कारकों से जुड़े होते हैं।

  1. आयु और लिंग

आमतौर पर, ब्रेन ट्यूमर किसी भी उम्र में हो सकता है, पर कुछ किस्म के ट्यूमर ख़ास उम्र समूहों में ज़्यादा प्रचलित होते हैं। उदाहरण के तौर पर, ग्लियोमा वयस्कों में ज्यादा आम है, जबकि बच्चों में मेडुलोब्लास्टोमा देखा जाता है। दरअसल लिंग भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके साथ ही मेनिंगियोमा महिलाओं में ज्यादा आम है। 

  1. जीवनशैली कारक

ब्रेन ट्यूमर होने के जीवनशैली कारक भी जिम्मेदार होते हैं। हालांकि धूम्रपान या शराब का सेवन जैसे जीवनशैली कारक सीधे तौर पर दिमागी ट्यूमर से जुड़े नहीं हैं, पर समग्र स्वास्थ्य पर उनका प्रभाव दिमाग में फैलने वाले और कैंसरों के प्रति बहुत ज्यादा संवेदनशीलता में योगदान कर सकता है। 

निष्कर्ष

हालांकि बच्चों में ब्रेन ट्यूमर बहुत ही कम होते हैं, पर संभावित चेतावनी संकेतों के बारे में जागरूक होना काफ़ी ज़्यादा मददगार साबित हो सकता है। बच्चे का लगातार सिरदर्द, मतली और उल्टी, नींद आना, दृष्टि, सुनने या वाणी में परिवर्तन, व्यक्तित्व में परिवर्तन, संतुलन और तालमेल संबंधी समस्याएं, दौरे और सिर का आकार बढ़ना जैसे चेतावनी भरे संकेत अगर आपको अपने बच्चे में दिखाई दें तो आपको तुरंत अपने डॉक्टर से मिलना चाहिए। बेहतर परिणामों के लिए शुरुआती पहचान और उपचार बेहद जरूरी हैं। इससे आपको काफी मदद मिल सकती है। अगर आपको भी अपने बच्चे में इस तरह के संकेत दिखाई दे रहे हैं, और आप इसके बारे में जानकारी लेना चाहते हैं, और तुरंत इसका समाधान चाहते हैं, तो आप आज ही झावर न्यूरो हॉस्पिटल में जाके अपनी अपॉइंटमेंट को बुक करवा सकते हैं और इसके विशेषज्ञों से इसके बारे में जानकारी प्राप्त प्राप्त कर सकते हैं।

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ब्रेन ट्यूमर क्या है? डॉक्टर से जाने लोगों में इसके क्या कारण हो सकते हैं?

ब्रेन ट्यूमर एक ऐसी बीमारी है, जो बच्चों से लेकर वयस्कों तक सभी को प्रभावित कर सकती है। ब्रेन ट्यूमर के मामले दुनियाभर में बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं। अगर  इन ट्यूमर के लक्षणों को वक़्त रहते न समझा जाये तो यह आपके लिए बहुत खतरनाक साबित हो सकते हैं। ऐसा कई बार होता है कि कई लोग ब्रेन ट्यूमर के लक्षणों को आम समझने की गलती कर बैठते हैं, जिससे की उनको आगे जाकर काफी परेशानी हो जाती है। इसलिए लोगों में इसकी जागरूकता फैलाने के लिए, हर साल 8 जून को वर्ल्ड ब्रेन ट्यूमर डे मनाया जाता है, जिसमें लोगों को इसके लक्षण और लोगों में इसके कारणों के बारे में बताया जाता है। दरअसल लोगों को ब्रेन ट्यूमर की स्थिति और गंभीरता को जानने के लिए, इसके अलग अलग पहलुओं को समझना बहुत ज्यादा जरूरी है। आइये इस लेख के माध्यम से ये जानते हैं, कि ब्रेन ट्यूमर क्या होता है? और लोगों में ब्रेन ट्यूमर के क्या कारण हो सकते हैं? आखिर इससे अपना बचाव कैसे किया जा सकता है? 

ब्रेन ट्यूमर क्या है?

असल में ब्रेन ट्यूमर दिमाग में या उसके आस-पास होने वाली कोशिकाओं की वृद्धि को ब्रेन ट्यूमर कहा जाता है। आमतौर पर ब्रेन ट्यूमर दिमाग की नसों में भी हो सकता है, और यह दिमाग की नसों के पास भी हो सकता है। आपको बता दें कि ब्रेन ट्यूमर कैंसर वाले भी हो सकते हैं और कैंसर रहित भी हो सकते हैं, ये दोनों तरह के कैंसर लोगों को परेशान कर सकते हैं। आमतौर पर कुछ ट्यूमर बहुत तेजी से बढ़ते हैं, तो कुछ ट्यूमर का विकास बहुत धीरे-धीरे होता है। व्यक्ति में जब ब्रेन ट्यूमर बढ़ता है तो उसकी स्कैल्प के भीतर दबाव बढ़ सकता है। इस तरह की स्थिति आपकी सेहत और दिमाग दोनों को नुकसान पहुंचा सकती है, और यह व्यक्ति के लिए घातक भी हो सकती है। 

दरअसल ब्रेन ट्यूमर और ब्रेन कैंसर को ऐसे समझा जाता है, ब्रेन ट्यूमर जो आपके मस्तिष्क से शुरू होता है और फैलता है, तो उसको प्राइमरी ब्रेन ट्यूमर के नाम से जाना जाता है। ये जरूरी नहीं है की हर ब्रेन ट्यूमर ब्रेन कैंसर ही होता है। पर जब कैंसर आपके शरीर के किसी और भाग से शुरू होता है और यह ब्रेन में फैलता है, तो उसको सेकेंडरी ब्रेन ट्यूमर या मेटास्टेटिक ब्रेन कैंसर भी कहा जाता है। 

ब्रेन ट्यूमर के कितने प्रकार होते हैं?

दरअसल ब्रेन ट्यूमर दो ही प्रकार के होते हैं, जैसे कैंसर वाले ब्रेन ट्यूमर और बिना कैंसर वाले ब्रेन ट्यूमर। 

  1. कैंसर वाले ब्रेन ट्यूमर : 

क्या आप इसके बारे में जानते हैं, कि ब्रेन कैंसर कैसे होता है? कैंसर वाले ब्रेन ट्यूमर को दिमाग के प्राइमरी ट्यूमर के रूप में जाना जाता है। यह ट्यूमर आमतौर पर दिमाग से शुरू होता है और धीरे-धीरे शरीर के और अंगों में फैलता है। इसके इलाज के बाद भी इसके वापस आने की सम्भावना बनी रहती है। 

  1. बिना कैंसर वाले ब्रेन ट्यूमर: 

आपको बता दें कि इस तरह के ब्रेन ट्यूमर का विकास बहुत ही धीरे-धीरे होता है। दरअसल बिना कैंसर वाले ट्यूमर का इलाज होने के बाद इसके दुबारा होने की सम्भावना बहुत कम होती है। 

ब्रेन ट्यूमर के लक्षण

आपको बता दें कि ब्रेन ट्यूमर के लक्षण और संकेत ब्रेन ट्यूमर के आकार और स्थान पर निर्भर करते हैं। इसके लक्षण इस बात पर भी निर्भर कर सकते हैं कि आपका ब्रेन ट्यूमर कितनी तेजी से बढ़ रहा है, जिसको ट्यूमर ग्रेड भी कहा जाता है। कई बार बिना लक्षण के भी यह हो सकता है। ब्रेन ट्यूमर के सामान्य लक्षण और संकेत इस प्रकार हैं :

  1. सिर में दर्द या दबाव जो सुबह के समय बहुत ज्यादा बढ़ जाता है।
  2. सिर में बार-बार दर्द होना और अधिक गंभीर प्रतीत होता है।
  3. सिरदर्द का धीरे-धीरे बढ़ना। 
  4. सिरदर्द जिस को तनाव सिरदर्द या माइग्रेन कहा जाता है।
  5. मतली या उल्टी का होना। 
  6. दृष्टि धुंधली होना, दोहरी दिखाई देना या दृष्टि के दोनों ओर दृष्टि का खो जाना।
  7. दौरे, विशेषकर यदि दौरे का कोई इतिहास न हो।
  8. हाथ या पैर में संवेदना या फिर गति का खत्म हो जाना। 
  9. थोड़े समय के लिए मेमोरी लॉस हो जाना। 
  10. नींद में कमी का होना। 
  11. संतुलन में परेशानी होना। 
  12. बोलने में समस्या आना। 
  13. बहुत ज्यादा थकान का महसूस होना। 
  14. रोजमर्रा के मामलों में उलझना। 
  15. दैनिक गतिविधियों में बदलाव का होना। 
  16. सरल आदेशों का पालन करने में परेशानी का होना। 
  17. व्यक्तित्व या व्यवहार में परिवर्तन का होना। 
  18. सुस्ती व थकान का बढ़ना।
  19. सुनने में समस्याएं होना। 
  20. बहुत ज़्यादा चक्कर आना या ऐसा महसूस होना कि दुनिया घूम रही है, जिसे वर्टिगो भी कहा जाता है।
  21. बहुत ज्यादा भूख लगना और वजन का बढ़ना।

लोगों में ब्रेन ट्यूमर के कारण

क्या आप इसके बारे में जानते हैं कि लोगों में ब्रेन ट्यूमर क्यों होते हैं, इसके जोखिम कारक क्या हो सकते हैं? हालाँकि अभी तक इसके मुख्य कारणों का पता नहीं चल पाया है, पर लोगों में ब्रेन ट्यूमर बढ़ाने वाले जोखिम कारकों का पता लगाया गया है, वह कुछ इस प्रकार हैं, 

  1. रेडिएशन के दुष्प्रभाव :

आयोनाइजिंग रेडिएशन के संपर्क में आना किसी भी व्यक्ति के लिए ब्रेन ट्यूमर के खतरे को बढ़ा सकता है। आमतौर पर कैंसर थेरेपी के वक़्त व्यक्ति इस रेडिएशन के संपर्क में आ सकते हैं। इससे व्यक्ति को ब्रेन ट्यूमर का खतरा बढ़ सकता है। 

  1. पारिवारिक इतिहास :

दरअसल कुछ लोगों में ब्रेन ट्यूमर का जेनेटिक कारण भी हो सकता है। अगर आपके परिवार में किसी और व्यक्ति को पहले से ब्रेन ट्यूमर की समस्या है, तो दूसरे व्यक्ति में इसके होने की संभावना बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। 

  1. एचआईवी/एड्स :

आमतौर पर कई लोग एचआईवी/एड्स जैसी समस्याओं के शिकार होते हैं, जिसकी वजह से उन्हें सामान्य लोगों की तुलना में ब्रेन ट्यूमर की संभावना बहुत ज्यादा होती है। अगर आपको एचआईवी-एड्स की समस्या है तो आपमें सामान्य लोगों की तुलना में ब्रेन ट्यूमर की संभावना ज़्यादा होगी। 

  1. पहले से कैंसर का होना : 

आपको बता दें की कैंसर से पीड़ित बच्चों में बाद के जीवनकाल में ब्रेन ट्यूमर होने की संभावना बहुत ज्यादा होती है। इसके साथ ही ल्यूकेमिया वाले वयस्कों में भी ब्रेन ट्यूमर होने की संंभावना ज्यादा होती है।

ब्रेन ट्यूमर का इलाज

कई लोगों के मन में यह सवाल होता है की क्या ब्रेन ट्यूमर का इलाज संभव है? हां ब्रेन ट्यूमर का इलाज संभव है पर यह इसके अलग-अलग कारकों पर निर्भर करता है, जैसे कि ट्यूमर कौन सा प्रकार है, यह दिमाग में किस स्थान पर है, इस ट्यूमर का आकार, साइज और इसकी कोशिकाएं कितनी असामान्य है आदि। आपको बता दें कि यह डॉक्टर तय करते हैं, कि आपके ब्रेन ट्यूमर के इलाज के लिए, कौन-सा उपचार सही रहेगा। जैसे की रेडिएशन थेरेपी, सर्जरी और कीमोथेरेपी जैसे उपचार ब्रेन ट्यूमर के खतरे को कम करने में मदद करते हैं।

निष्कर्ष

आज के समय में कई समस्याएं तेज़ी से बढ़ रही है, और सभी लोग इन समस्यायों से परेशान हैं। इनमें से ही एक समस्या ब्रेन ट्यूमर जिससे लोग काफी ज्यादा परेशान हैं। अगर इसका समय रहते इलाज न किया जाये तो यह आगे चलकर काफी ज्यादा खतरनाक साबित हो सकता है। इसलिए जैसे ही आपको इसके लक्षण दिखाई देते हैं तो आपको तुरंत अपने डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। अगर आपको भी ब्रेन ट्यूमर जैसी कोई समस्या है, और आप इसका इलाज ढूंढ रहे हैं, तो आप आज ही झावर न्यूरो अस्पताल में जाके अनुभवी चिकित्सकों से उचित इलाज प्राप्त कर सकते है, जो आपकी स्थिति को बिलकुल सही कर सकते हैं और आपको उपयुक्त उपचार प्रदान कर सकते हैं। आप इसके विशेषज्ञों से पूरी जानकारी ले सकते हैं।

अपहासिया क्या होता है? डॉक्टर से जानें अपहासिया के लक्षण और इलाज
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अपहासिया क्या होता है? डॉक्टर से जानें अपहासिया के लक्षण और इलाज

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ब्रेन ट्यूमर की शुरुआत कैसे होती है? इसके प्रकार, लक्षणों और उपचार के बारे में विशेषज्ञ से जानें
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डाउन सिंड्रोम क्या होता है, इसके मुख्य लक्षण, कारण और कैसे करें उपचार ?

डाउन सिंड्रोम अनुवांशिक से जुड़ा एक विकार है, जिससे पीड़ित व्यक्ति के पास एक अतिरिक्त गुणसूत्र का टुकड़ा होता है, जो विभिन्न शरीरिक और संज्ञात्मक से जुड़े समस्यों को उत्पन्न करने का कार्य करते है | जिसकी वजह से शरीरिक और मानसिक विकास में देरी, बौद्धिक से जुडी अक्षमताएं, चेहरे की विशिष्ट विशेषताएं जैसे की तिरछी आंखों का होना, एक सपाट नाक, हृदय से जुड़े कुछ दोष और थाइरोइड की समस्या आदि शमिल होते है | डाउन सिंड्रोम वाले व्यक्तियों को कई तरह की समस्यों से गुजरना पड़ जाता है, कई लोग ऐसे भी होते है जो उचित समर्थन और संसधानों के साथ ही अपना पूरी ज़िन्दगी बिताते है | प्रारंभिक हस्तक्षेप कार्यक्रम और अवशोषण शिक्षा उनके जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने में मदद कर सकते है और उन्हें समाज के प्रति सकारात्मक योगदान में सक्षम बना सकती है | यदि आप में कोई भी व्यक्ति ऐसे ही किसी स्थिति से गुजर रहा है तो इलाज के लिए आप न्यूरोमास्टर झावर हॉस्पिटल से परामर्श कर सकते है | आइये जानते है डाउन सिंड्रोम कितने प्रकार के होते है :-   

डाउन सिंड्रोम कितने प्रकार के होते है ? 

डाउन सिंड्रोम मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते है, जिनमें शामिल है :- 

 

ट्राइसोमी 21 

यह डाउन सिंड्रोम होने का सबसे आम प्रकार है, जिसके लगभग मामले 95 प्रतिशत होते है | यह सिंड्रोम होने वाले व्यक्तियों  में क्रोमोसोम 21 की अतिरिक्त टुकड़े के कारण उत्पन्न होता है | जिसकी वजह से शरीर में मौजूद प्रत्येक कोशिका में सामान्य दो के बजाए, कुल तीन टुकड़े बनने लग जाते है | आमतौर पर ट्राइसोमी 21 माता-पिता के प्रजनन कोशिकाओं के निमार्ण के दौरान उत्पन्न  होता है | जिसके परिणामस्वरूप निषेचित अंडे में अतिरिक्त गुणसूत्र 21 बनने लग जाते है | 

 

ट्रांसलोकेशन डाउन सिंड्रोम

इस डाउन सिंड्रोम के मामले कम से कम 3 प्रतिशत तक ही सामने आते है | यह डाउन सिंड्रोम एक व्यक्ति को तब होता है, जब कोशिका विभाजन के दौरान क्रोमोसोम 21 का एक हिस्सा टूट जाता है और क्रोमोसोम का दूसरा हिस्सा, क्रोमोसोम 14 के साथ जाकर जुड़ जाता है | हालांकि शरीर में क्रोमोसोम की संख्या 46 तक होती है और यह अतिरिक्त अनुवांशिक मटेरियल डाउन सिंड्रोम की विशिष्ट विशेषताओं का कारण उत्पन्न होते है | 

 

मोज़ेक डाउन सिंड्रोम 

इस डाउन सिंड्रोम को सबसे अधिक दुर्लभ रूप माना जाता है, जिसके लगभग मामले 2 प्रतिशत तक होते है | मोज़ेक डाउन सिंड्रोम वाले व्यक्तियों के शरीर में कोशिकाओं का मिश्रण हो जाता है, तो कुछ में क्रोमोसोम 21 के विशिष्ट 2 टुकड़ों या फिर अन्य तीन में विभाजित हो जाते है | इस तरह के मोज़ेक पैटर्न की उपस्थिति में निषेचन के बाद कोशिका विभाजन में हुए चूक के परिणामस्वरूप उत्पन्न होता है | जिसकी वजह से डाउन सिंड्रोम से जुडी शरीरिक और मानसिक विशेषतओं की डिग्री अलग-अलग होती है | 

 

डाउन सिंड्रोम होने के मुख्य लक्षण क्या है ?    

डाउन सिंड्रोम शारीरिक, विकासात्मक और समझने के लक्षणों का एक शृंखला को प्रस्तुत करता है | डाउन सिंड्रोम वाले व्यक्ति में अपनी क्षमताओं और विशेषताओं में व्यापक रूप से भिन्न होते है, तो कुछ सामान्य लक्षण भी हो सकते है, जिनमें शामिल है :- 

 

  • डाउन सिंड्रोम वाले व्यक्ति में शारीरिक विकास सामान्य रूप से काफी धीमा हो जाता है | 
  • उनके सिर का आकार सामान्य से छोटा और असामान्य आकार का हो सकता है | 
  • चेहरे का आकार थोड़ा चपटा होता है और नाक भी चपटी होती है | 
  • आंख के अंदरूनी कोने गोल आकार के होते है और ऊपर की ओर पलके झुकी हुई होती है | 
  • जीभ भी इनके मुंह से बाहर की तरफ निकली रहती है | 
  • इनके हाथों के आकार छोटे और चौड़े होते है और हथेली में एक ही तेह मौजूद होती है | 
  • उनकी मांसपेशियां काफी कमज़ोर होती हैम, जिसके परिणामस्वरूप जोड़ भी काफी ढीले होते है | 
  • आंखों के रंगीन भाग में छोटे-छोटे सफ़ेद धब्बे मौजूद होते है आदि | 

 

डाउन सिंड्रोम होने के मुख्य कारण क्या है ?            

डाउन सिंड्रोम विशेष रूप से अनुवांशिक विसंगतियों से उत्पन्न होता है, जिसका सबसे आम कारण ट्राइसोमी 21 है, जिससे पीड़ितों के मामले लगभग 95 प्रतिशत तक होते है | आसान भाषा में बात करें यह कोशिका विभाजन के दौरान होने वाली एक अवशिष्ट त्रुटि होती है, जिससे नोडिसफंक्शन भी कहा जाता है | इस त्रुटि की वजह से अंडे या फिर शुक्राणु में गुणसूत्र 21 की एक अतिरिक्त प्रतिलिपि होती है, जिसे अतिरिक्त गुणसूत्र को ट्राइसोमी 21 भी कहा जाता है | यह अतिरिक्त गुणसूत्र शरीर और मस्तिष्क के विकास में समस्या को पैदा कर सकती है | 

 

डाउन सिंड्रोम का कैसे करें इलाज ? 

हालांकि डाउन सिंड्रोम का विशेष रूप से कोई इलाज नहीं है, लेकिन इस स्थिति वाले व्यक्तियों को उनकी विशिष्ट आवश्यकताओं को पूर्ण करने के उद्देश्य से कई तरह के उपचार और हस्तक्षेपों से लाभ हो सकता है | इसके शुरुआती हस्तक्षेप कार्यक्रम में विकास का समर्थन करने और शारीरिक रूप से कौशल को बढ़ाने के लिए व्यावसायिक और भाषण चिकित्साएं को प्रदान किया जाता है | जैसे-जैसे डाउन सिंड्रोम वाले व्यक्ति वयस्कता की ओर बढ़ते है, व्यावसायिक प्रशिक्षण और रोज़गार सहायता उन्हें स्वतंत्रता प्राप्त करने और समाज से सार्थक योगदान देने में सक्षम बनाती है | 

 

यदि आप में से कोई भी व्यक्ति ऐसे किसी परिस्थिति से गुजर रहा है इलाज के लिए आप न्यूरोमास्टर झावर हॉस्पिटल से परामर्श कर सकते है | हालांकि इस समस्या का पूर्ण रूप से इलाज नहीं किया जा सकता है, लेकिन यह संस्था आपको प्रारंभिक हस्तक्षेप कार्यक्रम और अवशोषण शिक्षा प्रदान करने में मदद कर सकती है | इस संस्था के सीनियर कंसल्टेंट डॉक्टर सुखदीप सिंह झावर पंजाब के न्यूरोसर्जन में से एक है, जो पिछले 15 सालों से  डाउन सिंड्रोम वाले व्यक्तिओं की परेशानियों को कम करने में पूर्ण रूप से मदद कर रहे है | इसलिए परामर्श के लिए आज ही न्यूरोमास्टर झावर हॉस्पिटल की ऑफिशियल वेबसाइट पर जाएं और अपनी अप्पोइन्मेंट को बुक करें | इसके अलावा आप चाहे तो वेबसाइट पर दिए गए नंबरों से संपर्क कर सीधा संस्था से बातचीत कर सकते है |                 

 

     

अपहासिया क्या होता है? डॉक्टर से जानें अपहासिया के लक्षण और इलाज
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बच्चों में ब्रेन ट्यूमर होने के प्रमुख कारण कौन-से है और जाने कैसे करें बाल चिकित्सा ब्रेन ट्यूमर की देखभाल

न्यूरोमास्टर डॉक्टर सुखदीप सिंह झावर हॉस्पिटल ने अपने यूट्यूब चैनल में पोस्ट एक यूट्यूब शॉर्ट्स के माध्यम से यह बताया कि आज के दौर में ब्रेन ट्यूमर एक ऐसी समस्या बन चुकी है जिसे हर वर्ग के लोग इस समस्या से जूझ रहे है | पहले के समय में ब्रेन ट्यूमर के मामले सिर्फ वयस्कों में ही देखने को मिलते थे, लेकिन अब बच्चे भी इस समस्या का शिकार होने लग गए है |

 

अब अगर बात करें की ब्रेन ट्यूमर क्या होता है तो ब्रेन ट्यूमर या फिर ब्रेन कैंसर मस्तिष्क से जुड़ी एक ऐसी गंभीर समस्या है, जिसमें यह मस्तिष्क में होने वाली असामान्य कोशिकाओं का समूह होता है | हालाँकि ब्रेन ट्यूमर कैंसर युक्त भी हो सकता है और कैंसर रहित भी, इसलिए इससे पीड़ित मरीज़ को कुछ एहतियात को बरतना और देखभाल की बेहद आवशयकता होती है |   

 

डॉक्टर सुखदीप सिंह झावर ने यह भी बताया की बच्चों में होने वाले ब्रेन ट्यूमर का केवल सर्जरी ही एकमात्र उपाय है | इसलिए यदि कोई भी बच्चा ब्रेन ट्यूमर की समस्या से गुजर रहा है तो इसमें न्यूरोमास्टर डॉक्टर सुखदीप सिंह झावर हॉस्पिटल आपकी पूर्ण रूप से मदद कर सकता है | इस संस्था के पास न्यूरोलॉजिस्ट में स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की बेहतरीन टीम मौजूद है, जो इस एडवांस ट्रीटमेंट और नए तकनीकों के इस्तेमाल से ब्रेन ट्यूमर जैसे गंभीर समस्या का इलाज करती   है | इसलिए आज ही न्यूरोमास्टर डॉक्टर सुखदीप सिंह झावर हॉस्पिटल नामक वेबसाइट पर जाएं और अपनी अप्पोइन्मेंट को बुक कराएं | आप चाहे तो वेबसाइट पर दिए नंबरों से भी संपर्क कर सकते है | 

इससे जुड़ी अधिक जानकारी के लिए आप दिए गए लिंक पर क्लिक कर इस वीडियो को पूरा देखें | इसके आलावा आप न्यूरोमास्टर डॉक्टर सुखदीप सिंह झावर हॉस्पिटल नामक वेबसाइट पर भी विजिट कर सकते है | इस चैनल पर इस विषय संबंधी संपूर्ण जानकारी कर वीडियो बनाकर पोस्ट की हुई है | 

 

   

 

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गर्दन में दर्द होने के मुख्य लक्षण कौन-सा है ? जाने एक्सपर्ट से कैसे करें गर्दन दर्द के लिए व्यापक देखभाल

न्यूरोमास्टर झावर हॉस्पिटल के सीनियर कंसल्टेंट डॉक्टर सुखदीप सिंह झावर ने अपने यूट्यूब चैनल में पोस्ट एक यूट्यूब शॉर्ट्स में यह बताया कि आज के समय बदलती जीवनशैली के कारण से व्यक्ति को कई तरह की बीमारियों का सामना करना पड़ जाता है, क्योंकि एक व्यक्ति के ख़राब रहन-सहन के तरीकों से उनके सेहत को काफी प्रभावित कर देता है | इन्ही बीमारियों में से होने वाली सबसे आम बीमारी है गर्दन में दर्द होना | गर्दन में दर्द को सर्वाइकलजिया की समस्या भी कहा जाता है | यह एक किस्म की ऐसी बीमारी जिससे बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक हर वर्ग के लोग परेशान है | यह एक ऐसा दर्द होता है जिसमें आपके सिर के पीछे और उसके निचे वाली रीढ़ में तीव्र दर्द महसूस होने लग जाता है | आइये जानते है इसके प्रमुख लक्षण और कारण कौन-से है :- 

 

गर्दन में दर्द होने के प्रमुख लक्षण 

  • गर्दन में लगातार दर्द होना 
  • दर्द वाले क्षेत्र में जलन और चुभन जैसा अनुभव होना 
  • एक ऐसे दर्द का अनुभव होना जो आपके गर्दन से लेकर कंधे और बांह तक जाये 
  • गर्दन दर्द के साथ सिरदर्द का होना 
  • गर्दन के साथ-साथ पीठ में दर्द होना 
  • गर्दन को मोड़ने या हिलने से दर्द का उत्पन्न होना 
  • गर्दन को झुकाने में असमर्थ होना 

 

 गर्दन में दर्द होने के प्रमुख कारण 

  • उम्र का बढ़ना 
  • शारीरिक तनाव उत्पन्न होने से 
  • मानसिक तनाव उत्पन्न होने से 
  • गर्दन में किसी प्रकार की चोट लगने से 
  • ट्यूमर या फिर सिस्ट का उत्पन्न होना  

 

यदि आप भी गर्दन में दर्द और अकड़न से पीड़ित है तो घबराएं नहीं आप अकेले ऐसे व्यक्ति नहीं है, आप जैसे और भी ऐसे कई लोग है जो इस समस्या से जूझ रहे है, लेकिन इसका आसानी से इलाज किया जा सकता है | इसके लिए आप न्यूरोमास्टर झावर हॉस्पिटल से परामर्श कर सकते है | इस संस्था के न्यूरोमास्टर डॉक्टर सुखदीप सिंह झावर न्यूरोसर्जन में स्पेशलिस्ट है, जो इस गर्दन छुटकारा दिलाने में आपकी मदद कर सकते है | इसलिए आज ही न्यूरोमास्टर झावर हॉस्पिटल की वेबसाइट पर जाएं और अपनी अप्पोइन्मेंट को बुक करें | आप चाहे तो वेबसाइट पर दिये गये नंबरों से भी संपर्क कर सकते है | 

 

इससे जुड़ी अधिक जानकारी के लिए आप न्यूरोमास्टर डॉक्टर सुखदीप सिंह झावर हॉस्पिटल नामक यूट्यूब चैनल पर विजिट कर सकते है | इस चैनल पर आपको इस समस्या संबंधी संपूर्ण जानकारी पर वीडियो प्राप्त हो जाएगी |

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